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________________ एक वेर आसेवन करनेमें आवे अथवा पुनः पुनः ग्रहण करनेमें आवे उनके परिमाणको अधिक कर लिया हो । सो यदि इनमें कोई भी दोष लगा हो तो मै उक्त दोषोंको छोड़ता हूं। नवमा सामायिक व्रतने विषय जे कोई अति. चार लागो होय ते आलोऊं मन वचन कायाका जोग माठा वरताया होय सामायिकमें समता न आणी होय अणपूगी पारी होय जो मे देवति अइयार कओ तस्त मिच्छा मि दुक्कडं ॥ ___अर्थ-नवमें सामायिक व्रतमें यदि कोई दोष लगा हो तो मै उन दोषोंकी आलोचना करता हूं जैसेकि-सामायिकमें मन वचन और कायके योगको दुष्ट धारण किया हो सामायिकमे यदि शान्ति न की हो और विना समय पूर्ण हुए सामायिककी आलोचना करी हो तो मै इन दोषोंसे रहित होता है । दसवाँ देसावगासी व्रतने विषय जे कोई अतिचार लागो होय ते आलोऊं नीमी भूमिकी बाहिरकी वस्तु अणाइ हो १ मुकलाइ हो २ शब्द करी जणायो होय ३ रूप करी दिखलाई हो ४ पुद्गल नांखिया आपण पउ जणावो होय ५ जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ __ अर्थ-दशवे देशावकाशिक बनके दोपोकी आलोचना करता हूं जैसेकि-परिमाण की हुई भूमिकाके वाहिरने वस्तु मंगवाई हो १ अथवा मेनी हो २ शब्द करके अपने आपको जताया वा दर्शाया हो ३ अथवा रूप करके अपने भाव प्रगट किये हों ४ किसी वस्तुके गिरानेसे किसी व
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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