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________________ अर्थ-सप्तम उपभोग परिभोग परिमाण व्रतके विषय यदि कोई अतिचार लगा हो तो मै उसकी आलोचना करता हूं।यद्यपि सचित्त वस्तुओंका सर्वथा त्याग गृहस्थको नहीं होता तथापि यदि सर्वथा त्यागं हो तो-निम्न लिखित दोषोंको दूर करे जैसेकि-सचित्त वस्तुका आहार करना १ सचित्त प्रतिवद्धका आहार करना २ अपक्क वस्तुका आहार करना ३ दुःक्वप वस्तुका आहार करना ४ तुच्छौषधिका आहार करना ५ यह पाच ही दोप है । सो इनको दूर करके फिर पंचदश कर्मादानको भी छोड़े अर्थात् पंचदश मार्ग विशेष कर्म आनेके है इस लिए उनको छोडे जिनके नाम निम्न लिखितानुसार है-कोयलोंका बनन १ वन कटवाना २ शकटादिका व्यापार ३ भाटक कर्म ४ स्फोटक कर्म ५ दातोंका बनन ६ लाखका बनन ७ रसोंका बनज ८ केशोंका बनज ९ विषका बनज १० यत्रपीडन कर्म १२ नपुंसक कर्म १२ [ निलांछन कर्म] वनको अग्निका लगाना १३ जलाशयको शुष्क करना १४ हिंसक जीवोंका पोपण करना १५ । सो यदि कोई भी दोष लगा हो तो मै उन दोषों से पीछे हटता हूं। आठमा अनर्थ दंड वेरमण व्रतके विषय जे कोई अतिचार लागो होय ते आलोऊ कंदर्पनी कथा कीधी होय १ भंडचेष्टा कीधी होय २ मुखारि वचन बोल्या होय ३ अधिकरण जोडी मुक्या होय ४ उव. भोग परिभोग अधिका वधारया होय ५ जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ अर्थ-अष्टमा अनर्थ दंड विरमण व्रतके अतिचारोंकी आलोचना करता हू-कामजन्य कथा की हो १ भडचेष्टा की हो २ असम्बद्ध वचन भापण किए हों ३ अपरिमाणयुक्त शस्त्रादिका संग्रह किया हो ४ जो वस्तु
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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