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________________ स्तुको बतला दिया हो ५ यदि इस प्रकारसे कोई भी दोष लगा हो तो मै उन दोषों से अपने आपको पृथक् करता हूं। इग्यारमा पडिपुण्ण पोसह व्रतने विषय जे कोई अतिचार लागो होय ते आलोउं अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय सिज्जा संथारा १ अप्पमन्जिय दुप्पमजिय सिज्जा संथारा २ अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवण भूमिका ३ अप्पमन्जिय दुप्पमजिय उच्चारपासवण भूमिका ४ पोसह मांहि विकथा प्रमाद कोधा हाय ५ जो मे देवसि अइयार को तस्त मिच्छा मि दुक्कडं ॥ अर्थ-एकादशवे प्रतिपूर्ण पोषध व्रतके अतिचारोंकी आलोचना करता हू कि-शय्या संस्तारकको अप्रतिलेखित वा दुःप्रतिलेखित किया हो १ अथवा शय्या सस्तारकको अप्रमार्जिन वा दु प्रमार्जित किया हो २ इसी प्रकार विष्टा और मूत्रके स्थान भी सम्यक् प्रकारसे प्रतिलेखितादि न किए हो ३ ओर प्रमार्जित भी न किए हो ४ और पौषधमें विकथा वा प्रमाद किया हो ५ । सो इस प्रकारके दोषोंसे मै पृथक् होता हू अर्थात् मै उक्त दोपोको छोडता हूं। बारमा अतिथिसंविभाग व्रतने विषय जे कोई अतिचार लागो होय ते आलोऊं सूज्झती वस्तु सचित्त उपर मूफी होय १ सचित्त करी ढाकी होय २ काल अतिक्रम्या होय ३ आपणी वस्तु पारकी कीधी होय ४ मच्छर भाव दान दीधा होय ५ जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छा मि दुकडं ।।
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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