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________________ न कारवेमि मणला वयसा कायसा तस्तभंते पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ १॥ हिंदी पदार्थ-( करेमि ) मैं करता हूं ( भत्ते ) हेभगवन् (सामाइयं) समतारूप भाव जो सामायिक है (सावन) और सावद्यल्प जो (जोग) मन वचन कायका योग है ( पञ्चस्वामि) निसका प्रत्याख्यान करता हूं (जाव ) यान्न् (नियम) नियम सामायिकका काल है तावत् काल एय्यत मामायिकका भेदन करता है, (दुविहं) ने करण जैसे करना और कराना सो लान्छ योगको (मणा ) मन करके ( वयसा ) वचन करके ( कायसा) काय करके (निविहेण) इन तीनो योगों करके (नकरोमि ) न करूं ( न कारवेमि) नही औरोसे कराऊं (नरस) वह जो सावद्यल्प पाप है ( भत्ते ) हे भगवन् ( पडिकमामि ) पापसे पीछे हला ९.( निनामि ) और पापसे अपनी आत्माको मिन्न करनेके लिये आत्मनिन्दा करता हूँ ( गरिहामि) विशेष करने आत्माको अपमे पृथक् करनेके लिये आत्मनिंदा करता हूँ (अप्पाणं ) और अपनी आत्माको (बासिरामि) पापसे अलग करता हूं। भावार्थ-उक्त मूत्रमें यह वर्णन है कि सामायिक करनेवाल भगगनकी आनानुसार मागयिकम द्विविध त्रिविध करके सावध (हिंसक) योगोंका प्रत्याख्यान करता है-जने मावध कर्म कहें नहीं मन करके वचन करके काय नरके, कराऊं नहीं मन करके वचन करके काय करके, और पापस अपनी आत्माको प्रथक करके समताल्प भावों मे आत्माको स्थिर करता हू ॥ फिर अपनी आलोचनाके वास्ते निम्नलिखिन सूत्र पठन करेक्योंकि नान.शंन चारित्राचारित्रकीवित्वनाथ ही कायोग किया जाना है।। इच्छामि ठामि काउसग्गं जो मे देवसि अइयासे कओ काइओ बाइओ माणसिओ उस्सुनो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुग्झाउ दुचिंतित अणायारो
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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