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________________ अणिच्छियव्वो असावगो पावगो नाणे तह दसणे च. रित्ताचरिते सुय सामाइय तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसा. याणं पंचण्हं अणुव्वयाणं तिण्हं गुणव्वयाणं चउण्हं सिक्खावयाणं बारस्त विहस्त साव्वग धम्मस्त जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥२॥ हिंदी पदार्थ (इच्छामि ) मै इच्छा करता हू (ठामि ) एक स्थानमें स्थिर रहकर ( काउसग्ग ) कायोत्सर्ग करनेकी ( जो ) जो ( मे) मैंने ( देवसि) दिन सम्बन्धि ( अइयारो) अतिचार (कओ) किया है (काइओ) कायसे ( वाइओ) वचनसे (माणसिओ) मनसे तथा (उस्सुत्तो) सूत्रसे प्रतिकूल कथन किया हो ( उम्मग्गो) उन्मार्ग ग्रहण किया हो जो कि सर्वथा ही निनमार्गसे प्रतिकूल है ( अकप्पो ) अकल्पनीय पदार्थ सेवन किया हो जैसेकि मास मदिरादि ( अकरणिज्जो) अकरणीय कार्य किए हों ( दुज्झाउ ) दुष्ट ध्यान किया हो जैसे कि आर्तव्यान रौद्रध्यान ( दुचिंतिउ) दुष्ट चिंत्वन किया हो (अणायारो) अनाचार सर्वथा ही नियमोंका भग कर देना इस प्रकारसे काम किया हो ( अणिच्छियव्वो) जो इष्ट नहीं है उसकी इच्छा की हो (असावगो पावगो) श्रावक वृत्तिसे विरुद्ध काम किया हो (नाणे) ज्ञानमें ( तह ) तथा ( दसणे ) दर्शनमें तथा ( चरित्ताचरित्ते) चरित्राचरित्रमें (देशव्रतमे) (सुए) श्रुत सिद्धान्तमें (सामाइए) समतारूप भाव सामायिकमें फिर ( तिण्हं गुत्तीणं ) तीन प्रकारकी गुप्ति जैसेकि-मन वचन कायको वशमें न किया हो ( चउण्ह कसायाणं) चार प्रकारकी कषाय की हो जैसेकि-क्रोध मान माया लोभ और ( पचण्हं अणुव्वयाण) पाच प्रकारके अनुव्रत जैसेकि स्थूल हिंसा त्याग १ स्थूल मृपावाद त्याग २ स्थूल अदत्तादानका त्याग ३ स्थूल मेथुनका परित्याग जैसेकि स्वदार संतोष ४ स्थूल परिग्रहका परित्याग ५ इन व्रतों में अतिचार लगा हो अथवा ( तिण्ह गुणव्वयाणं) तीन ही गुणवतोंमें दोष
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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