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________________ - - - - पिका-नियुक्ति टीका अ.६ २.६ जी. कर्म. समानैवविशेषाधिकोवेति ५३ सायाविशेषण परिणाममन्द इत्यर्थः । अयं शत्रुहन्तव्या, हनिष्याम्येतं पुमांसनिविभावाप्रवर्तन ज्ञात मित्युच्यते, मदात् प्रमादाद्वा, एतं पुमासं इनिष्यामि, हस्पन बुध्यमवृत्तिः अज्ञाता मित्युच्यते, मावस्तु आत्मनोभवनं परिणामविशेषो मोध्या मावशब्दस्या प्रत्येकमभिसम्बन्धात तीव्रभावमन्दभावज्ञातभावानात भाव इत्यर्थः । वीर्यश्च जीवस्य क्षायोपशमिका , क्षायिको वो मात्र इत्युच्यते, मन्यस्य स्वयक्तिविशेषों वा वीर्यम्। अधिकरणं पुनरधिक्रियन्तेऽ , अस्मिन्निति पत्याधिकरपं. द्रव्यमित्युच्यते, विशेषपदस्य चोभयत्राऽभिसम्बन्धात् वीर्यविगो द्रव्यस्य पुरुषादे निजशक्तिविशेषलक्षणः खड्गाधिकरणविशेषञ्चति यते तथा च तीव्र भाव, मन्दसावज्ञातभावाऽज्ञातभाव वीर्यावशेषाधिकरण विशेभ्यता घोतकोनचत्वारिंशत्साम्परायिकाऽऽस्वविशेषोः भवति । एक इसका हनना करूंगा मइस प्रकार जान बूझकर प्रवृत्ति करना ज्ञातभाव कहलाता है। अनजान में प्रमाद से प्रवृत्ति होना अज्ञातभाव है भावकी अर्थ आत्माको अध्यावसाय अथवा परिणाम प्रत्येक के साथ उसका सम्बन्ध है, जैसे तीव्र भाव, मन्दभाव ज्ञातभाव और अज्ञातभाव जीव को क्षायोपर्शमिक या क्षायिक भाव वीर्य कहलाता है अथवा द्रव्यकी अपनी जो विशिष्ट शक्ति है उसे वीर्य कहते हैं । अधिकरण वह द्रव्य या साधन जिसके द्वारा कोई क्रिया हो जाती है और जिसे लोकभाषा में औजार कहते हैं 'विशेष, पद का दोनों अर्थात् वीर्य और अधिकरण के साथ सम्बन्ध है इस प्रकार जीव की शक्ति की विशेषता को वीर्य विशेष और तलवार आदि की शक्ति की विशेषता को अधिकरणविशेष कहते हैं । इस प्रकार तीव्र आव, मन्दभाव, ज्ञातभाव अज्ञातभाव वीर्यविशेषा और अधिकरण विशेष; से साम्बरायिक आस्रव में विशेषता अर्थात तरतमता उत्पन्न हो जाती है । { }},57_11) the घाय" मन test Na पूर्व प्रवृत्त इश्वी सनी ઉંધા છેઅહિંસા અથવા પ્રમાદધી પ્રવૃત્તિ થવી આફતભા છે.ભાવ. wી મા અધ્યાય અથવું પરિણામ પ્રત્યેની સાથે તેને બંધ HEPATHAमाव; महा शतिभावाना TANA. ભિક થા ક્ષવિભાધિ “વા કહેવાય છે અથવા દૂધની આવી છે मक्षाशात बाय":"AMPARAN ઇજીમાડે કિંઈ કિયાં કરવામાં આવે અને જેને લેહમાં પર विशेष अर्थात वाया ना साथ समाधा, જીર્થે જીવવીશકિતવિશેષતાને હાથ વિશેષ અને સરર્વરની શકિતની 7 HINDI
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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