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________________ । Sa Barfठी घED .NF RAF .Infeी तत्वार्थी magar स्य सर्वात्मकार्यत्वात सप्तासांसारिणा साधारणतयाः तस्मात् कर्मपन्धः फार्म जमवनम्प्रति अविशेष: स्यादित्यानां समाधातुं कायिकादियोगंत्रयस्यामस्यासशसम्भवे सत्यपि अचेत हेभयो परिणामविशेषेभ्यः कमबन्धफळानुमबमवियोग सम्भवतीत्या दिव्य मंदाहि भाव सीरिग्राहिगरपावि से सेहितों मांविसे मो इति। तीन मन्दादिभावकीर्याधिकरण विशेष यतीव मन्दादिमान भावार मन्दावार आदिपन शातामातभावप्रणम्, तेन जातभावोजातभावः बाविशेषोऽधिकरविशेषश्चत्येतेपी द्वन्द्वे सति तीव्र मन्दादि भाव वीर्याऽषि करणविशेषास्तेभ्यः-तदपेक्षया खलु आस्रवविशेषः साम्परायिकाऽसर्व विशेषों भवति तत्रावागायनतरकारणोंदीरणवशादुदिक्ता उत्कृष्ट आत्माध्यवसायविशेष परिAस्तीत्राइत्युच्यते त्तद्विपरीत परिणामों मन्द इत्युच्यते, अनुत्कट'आत्माध्यवसामान्य हाये सपा संसारी जीवों में समान रूप से पाये जाताह तीव:कमबन्ध भी सभी में समान होना चाहिए और उसकी कल सभी को समान प्राप्त होना चाहिए। किन्तु ऐसा होता नहीं है, जसका कारण जीव के परिणामों में रहा हुआ भेद है जो अनेक प्रकार का होता है, यह बतलाने के लिए कहा गया है। I NT(07) तीव्रभाव, मन्दभाव और आदि' शब्द से ज्ञातभाव, अज्ञातभषि सीयविशेष और अधिकरण विशेष से साम्पायक आस्रव में विशेषता विषमता-भिन्नता) होती है पोह्य एवं आभ्यन्तर कारण मिलने पर आत्मा में जो उत्कृष्ट अध्यवसाय उत्पन्न होता है। उसे तीव्रभाव कहते हैं- मन्दभाव इससे विपरीत होता है अर्थाताजी अध्यवसाय उत्कृष्ट ना हो वह सन्द कहलाता। यहि शत्रु हनन करने योग्य हम PAR मालपार पधु- विशेषता य ह હાલારીપિકાએ આફ્રિજાસૂવાના કારણે બધજીમાં સોષ્યિ POSARSHApari समान)३५ लामोथी (50 HERR अने, (पशु) हरेने શ રે ૪તુઓમણે બનતું નથી, એનું પરિણજીવનપરિણમેશાં isayerimeTTES HAIR मामा भाच्या MEENApsarasays AIRAYAIdals FASALGAIRecावि અને અધિકરણ વિશેષથી સામ્પરાયિક આસવમાં વિશેષતા (ષિમf=શિત) ધાર્યું છે. બાહ્ય તથા આત્યંતર કરણે મળવાથી આત્મામાં જે ઉત્સાહ અધ્યવસાય ઉત્પન્ન થાય છે તેને તીવ્રભાવ કહે છે. મન્દ્રભાલઆનાથી વિપરીત હોય છે, અડદ છે અને બિનય છે ફાલ છે. સુહેવા રહેલ ભેટ
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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