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________________ % 3D : --- -. .. दीपिका-नियुक्ति टीका म. ७ सू. २५ हिंसास्वरूपनिरूपणम् तत्वार्थनियुक्तिः पूर्वमूत्रे महारम्भमहापरिग्रहादयो नारतिय मनुष्यायुषामानवो भवतीति प्रतिपादितम्,लहारम्भ महापरिग्रहादौ हिंसाऽवश्यम्भाविनीति हिंसास्वरूपमाह-'फसत जोगा पाणावायो हिला': इति । प्रमचयोगात्-मद्यविषयादिभिः पञ्चभिः समादेः प्रमाचतीति प्रमत्तः आत्मा तन-ममादाः पञ्च,यथा-- -- 'मज्जं विलयकलाथा निहादिकाय पंचमी भणिया। . ... ... एए.पंच पक्षाया-जीवं पाति संसारे ॥१॥..- मध विषयकषाया निद्रा विकथा च पञ्चमी भणिता। . . , एते पञ्च प्रमादा जीवं पातयन्ति संसारे ॥१॥ इति, - तत्र मध शीध्वादिकं प्रसिद्धं तच्च-ममायहेतुत्वान्मधं प्रमादः १ विषयाः पञ्च स्पर्शनादि पञ्चेन्द्रियजन्यत्वात् ५ कपाया क्रोधादयश्चत्वारः ४ निद्रा, निद्रा निद्रादि...सत्यार्थनियुक्ति--पूर्व मूत्र में बतलाया गया था कि महारंभ, महा परिग्रह आदि शब्दले पञ्चेन्द्रिय बध, मद्यमांस का सेवन करना नारक, तिर्यंच और मनुष्यगति आदि के कारण हैं, महारंभ और महापरिग्रह आदि में हिला - का होना अनिवार्य है, इस कारण यहां हिला का स्वरूप कहते हैं - - . . . . . . . ... : -... --~-- .. प्रमत्तयोग से प्राणों का अतिपात्र · करना हिंसा है। प्रमत्सयोग अर्थात् मद्य विषय आदि जांच प्रभादों से युक्त आत्मा के व्यापार से प्राणों का जो वियोग होता है, उसे हिला कहते हैं। प्रमाद पांच हैं, यथा 'मच, विषय, कषाय, निद्रा:-और- विश्था, ये पांच-प्रमाद जीव को संसार में परिभ्रमण कराते हैं-॥१॥. . . . . ., " सीधु आदि मदिरा को अद्य कहते हैं । यह लोक में प्रसिद्ध है । मद्य .. તન્નાથ નિર્યુકિત –પૂર્વસૂત્રમાં બતાવવામાં આવ્યું હતું કે મહારંભ મહાપરિગ્રહ ઠ આદિ શબદથી પંચેન્દ્રિયવધ, દરે માંસનું સેવન કરવું–નારક તિયચ અને, મનુષ્યગતિ આદિનાં કારણે છે. મહારંભ અને મહાપસ્થિ આદિમાં હિંસાનું દેવું અનિવાર્ય છે, આથી અહીં હિંસાનું સ્વરૂપ કહીએ છીએ1. ૯ પ્રસન્ન રોગથી પ્રાણેનેવિગ ઉર હિંસા છે પ્રમતગ અર્થાત્ દારૂ વિષય આદિ પાંચ પ્રમાદેશી વ્યક્ત આત્માનું વ્યાપારથી પ્રાણને જે વિગ થાય છે તેને હિંસાનું કહે છે. પ્રસાદ પાંચ છે જેવા કે-- - : " ___भ विषय, उपाय, निम-विथा, "An पाय प्रमाः वने ससारम, परिश्रमाय ४२शवनास 'छे. ॥१॥ ' : - साधु. नि :मध छ । २ मा प्रसिद्ध 2. २५शन, - -
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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