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________________ २५६ तित्वार्धसूत्र, तहान ममत्तः पश्यते । यद्वा-इन्द्रियाणां प्रचारमबंधार्याऽपरामश्या ऽविचामिक 'तमान अस्मिाँ ममत्तः । यद्वा अर्द्ध कपायोदय प्रतिष्टः भाणातिपातस्य हेतु स्थितोऽपि योऽहिंसागं शाठयेन कपटेन, दम्भेन यत्नं . विधत्ते नेतु परमार्थेन से प्रमत्त उच्यते ! अथवा निम्नोक्त पञ्च प्रभादोपेतत्वात्ममत्ता, पञ्च प्रमादा यथा मजं विलयकेसायां निंदाधिकहाय पंचमी भणिया। का एएपंच पनाया जीव पाडे तिलसारे ॥१॥ समिपयकपायाः निद्राविकथा च पञ्चमी भणिताने , -की । एसे एञ्च प्रमादा जीव भासयन्ति संसारेगाशा : 2 इति समवस्याऽऽत्मनाभ्योग मनोवाक्कायक्रियारूपः ममत्तयोगात इन्द्रि यादीनां दशाणानां यथासम्भवमतिपातो व्यपरोपणं, वियोजन हिंसा ॥२५॥ प्रमोद क्यों विवाह मंसाद को कारण है । जो प्रमाद-वाला हो वह या बिना विवेक के-अनसमझे, अनसोचे प्रवृत्ति करने वालों आरमी प्रमत्त है । अथवा जिसके तीन कपाय का उद्घ हो और जो हिंसा के कारणों में स्थित होकर भी धूर्तता कपट-या-दंभ से यतना करता हो, पारमार्थिक रूप से नहीं, उसे प्रमत्त कहते हैं । अथवा जो पांच प्रकार के प्रसार आयुक्त हो वह प्रमत्त कहलाता है। पांच प्रमाद इस प्रकार हैं लय इन्द्रियों के विषय क्रोधादि कषाय, निद्रा और विकथा, ये चमारजीन को- संसार में अर्थात जन्म-मरण के चक्र में गिराने वाले हैं। समान अश्मा का योग- अर्थात् मन-वचन काघ का व्यापार प्रमत्त. योगमहलाता है। प्रमत्त योग से इन्द्रिय दस-प्राणों का यथा-संभवः वियाग करना हिला है ॥२५॥ . . . . . . . .--- - - પ્રમાદનું કારણ છે. જે પ્રમાદી હોય તે અથવા વિવેક વગર, વગર સમયેવગેર વિચચે પ્રવૃત્તિ કરનારી આત્મ પ્રમત્ત છે અથવા જેને તીવ્ર કષાયને ઉદય થાય તેમજ જે હિંસાના કારણોમાં સ્થિત થઇને પણ ધૂતા- કપટ અથવા દંભથી ભૂતના કરતા હોય, પારમાર્થિક રૂપથી નહી તેને પ્રેમ કહે અથવા ચિ પ્રકારની પ્રમાદેથી યુક્ત હોય તે પ્રમત્ત કહેવાય છે. पायामाई गई प्रमाण ----- - - "न्द्रियामा विषय, धादिपाय, निद्रा भने विश्था, 'मी पाय પ્રદ સંસારમાં અર્થાત્ જન્મ-મરણ ચવામાં પડનાર કહ્યાં છે. પ્રમત્ત આત્માને ચાગ અર્થાત્ મન વચન કાયાને પાર પ્રમત્તયાગે કહેવાય છેપ્રેમગથી ઈધિ આદિ દેશ પ્રણેનો યથાસંભવ વિયોગ ४२१ डिसा imum t...'
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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