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________________ [ २०० .. "झान-प्रकरण अविनाभाव.का ज्ञान होना आवश्यक है और अविनाभाव का ज्ञान धूम्र और अग्नि को चारस्वार एक साथ देखने से तथा अग्नि के अभाव में धूम्र का भी अभाव देखने से हुश्रा करता है। परमाणु को अनुमान से जानने के लिए भी परमाणु के साथ किसी अन्य पदार्थ के, अविनाभाव का निश्चय करना होगा और यह अविनाभाव निश्चित करने के लिए परमाणु को और उसके अविनाभावी उस पदार्थ को बार-बार एक साथ देखना पड़ेगा। पर यह पहले ही बताया जा चुका है कि हम कभी परमाणु को देख ही नहीं सकते। अतएव परमाणु को न देख सकने के कारण अविनाभाव निश्चित नहीं हो सकता.और अविनाभाव के निश्चय के बिना परमाणु का अनुमान नहीं किया जा सकता। ऐसी अवस्था में अनुमान से परमाणु का ज्ञान होना संभव नहीं है। . अगर यह माना जाय कि परमाणु रूप बाह्य पदार्थ नहीं है किन्तु स्थूल रूप पदार्थ है, सो भी ठीक नहीं प्रतीत होता । स्थूल पदार्थ अनेक परमाणुओं के संयोग. से ही बनता है और जब परमाणु ही नहीं सिद्ध होते तो उनके समुदाय से स्थूल पदार्थ का बनना किस प्रकार सिद्ध किया जा सकता है ? अतः विचार करने पर यही प्रतीत होता है कि जगत् में हमें जो पदार्थ मालूम होते हैं, वह सब भ्रम ही है। .. . जैसे वाह्य पदार्थों का अस्तित्व नहीं है उसी प्रकार ज्ञान का भी अस्तित्व नहीं है। पदार्थों को जानने के लिए ही ज्ञान की आवश्यकता होती है और जब पदार्थ ही नहीं है.तब ज्ञान किस लिए माना जाय ? इस प्रकार न क्षेय है, न ज्ञान है। यह जगत् शून्यमय है-कुछ भी नहीं है। . ..., यह शून्यवादी का अभिप्राय है। इस पर विचार करने के लिए शून्यवादी से . यह पूछना चाहिए कि-भाई ! तुम जो कहते हो वह प्रमाण-युक्त है या प्रमाण रहित है ? अगर तुम्हारा कथन प्रमाण रहित है तब तो वह स्वतः अमान्य ठहरता है, क्योंकि कोई भी बुद्धिमान् मनुष्य अप्रामाणिक-प्रमाणहीन बात स्वीकार नहीं कर सकता। अगर तुम अपने मन को प्रमाण से सिद्ध मानते हो तो, प्रमाण को स्वीकार करना होगा। अगर प्रमाण को स्वीकार करते हो तो तुम्हारे शून्यवाद की धजियाँ उड़जाएगी। क्योंकि तुम प्रमाण को स्वीकार करते हो और साथ ही शून्यवाद को स्वीकार करते हो, यह परस्पर विरोधी बात है। इसलिए शून्यवाद को अंगीकार करना तर्क से सर्वथा असंगत है। ... पदार्थ तो अणु रूप भी है, स्थूल रूप भी है और आत्मा, आकाश आदि पदार्थ . ऐसे भी हैं जो न अणु रूप हैं और न स्थूल रूप ही हैं। आपका यह कथन सही नहीं है कि स्थूल पदार्थ परमाणुओं के संयोग से ही बनता है, क्योंकि स्थल से भी स्थूल की उत्पनि होती है, जैसे सूत से कपड़ा बनता है, आटे से रोटी बनती है। अतएव स्थूल पदार्थ का इस आधार पर निषेध नहीं किया जा सकता। और जब स्थल पदार्थ का निषेध नहीं हो सकता तो उससे परमाणु का भी अनुमान किया जा सकता है। . अतः सूत्रकार ने यह ठीक ही कहा है कि शान द्रव्य आदि को जानता है। ... . . शान का अस्तित्व मानते हुए भी वाहा पदार्थों का अस्तित्व न मानने वाले लोगों
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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