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________________ - 'पांचवां अध्याय [ १६६ ] . भाग्यः-पांच ज्ञानों का निरूपण करने के पश्चात् सूत्रकार ने ज्ञानों के विषय का निरूपण किया है । शानों का विषय जगत्-वर्ती द्रव्य, पर्याय और गुण है। जगत् में जितने भी द्रव्य और उनके गुण-पर्याय हैं वे सब इन पांचों ज्ञानों के द्वारा गृहीत हो जाते हैं। किसी भी द्रव्य या गुण आदि को जानने के लिए इन पांच के अतिरिक्त छठे शान की कल्पना करने की आवश्यकता नहीं है । इस कथन से यह भी नियमित हो जाता है कि शान के द्वारा द्रव्य श्रादि सभी का ग्रहण अवश्य हो जाता है । ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जो इन शानों से अज्ञात रह जाय अथवा जिसे यह ज्ञानं जानने में समर्थ न हों। इस कथन से यह भी निश्चित हो जाता है कि शान, द्रव्य आदि बाह्य पदार्थों को अवश्यं जानता है। प्रथम सूचन से उन लोगों के मत का निरास किया गया है जो कि प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाण रूप इन पांच शानों से भिन्न और भी ज्ञानों की कल्पना करते हैं। " द्वितीय सूचन से यह सूचित किया गया है कि पदार्थ में प्रमेयत्व धर्म है अर्थात् प्रत्येक पदार्थ में शान का विषय बनने की योग्यता हैं और मान में पदार्थों को विषय करने की योग्यता है। : - तृतीय सूचन से उन लोगों का भ्रम निवारण किया गया है जो शान को बाह्य पदार्थों का साता नहीं मानते। इस भ्रम में ग्रस्त कुछ लोग कहते हैं कि वाह्य पदार्थजान से भिन्न दूसरा कोई भी पदार्थ है ही नहीं, और कोई कहते हैं कि यह जगत् शून्य रूप है। न तो ज्ञान ही सत् है, न जान से मालूम होने वाले घट पर श्रादि पदार्थ ही सत् हैं। हमें घट श्रादि का जो जान होता है वह भ्रम मात्र है और अनादिकालीन कुसंस्कारों के कारण ऐसा प्रतिभास होता है। संक्षेप से इन मतों पर विचार किया जाता है। .. शून्यवादी लोग कहते है. अगर बाह्य पदार्थ का अस्तित्व स्वीकार किया जाय तो उसे परमाणु रूप मानना चाहिए या स्थूल रूप मानना चाहिए ? अंगर यह कहा जाय कि बाह्य पदार्थ वस्तुतः परमाणु रूप है तो यह प्रश्न उपस्थित होता है कि परमाणुओं का ज्ञान हमें प्रत्यक्ष से होता है या अनुमान से होता है ? प्रत्यक्ष से परमाणुओं का मान होता तो अनुभव से विरुद्ध है, क्योंकि हमें परमाणु का झान स्वप्न में भी कमी नहीं होता । 'यह घट है 'यह पट है' ऐसा.शान हमें होता है पर यह परमाणु है' 'मैं इस परमाणु को देखता-जानता हूँ ऐसा प्रतिभास कभी किसी को नहीं होता है । इसलिए परमाणु रूप पदार्थ का प्रत्यक्ष मान मानना ठीक नहीं है । अगर अनुमान प्रमाण से परमाणु का ज्ञान होना माना जाय तय भी बाधा आती है। अनुमान प्रमाण तभी होता है जब व्याप्ति या भविनाभाव का निश्चय हो चुका हो । एक भवोध चालक धुंश्रा देख कर अग्नि का अनुमान नहीं कर सकता । किन्तु जो मनुष्य उनके अविनाभाव का शाता है भर्थात् जिसे यह पता है कि 'धुश्रा अग्नि के होने पर ही हो सकता है, अग्नि के अभाव में धुंआ नहीं हो सकता वही मनुष्य धूम्र को देख कर अग्नि का अनुमान कर सकता है। अतएर भनुमान करने के लिए
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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