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________________ द्वितीय अध्याय ज्ञान के साधनों का प्रचार करना चाहिए और बहुमान पूर्वक ज्ञान की निरन्तर आराधना करना चाहिए । सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति ही. आत्म-कल्याण का मूल है। उसके बिना की जाने वाली क्रियाएँ मुक्ति का कारण नहीं होती है । ऐसा समझकर सम्यग्ज्ञान की साधना करना शिष्ट पुरुषों का परम कर्तव्य है। मूल:-निहा तहेव पयला, निहानिहा य पयलपयला य । ततो प्रथाणगिद्धी उ, पंचमा होइ नायव्वा ॥ ५॥ चक्खुमबाखू मोहिस्स, दंसणे केवले य श्रावरणे। एवं तु नव विगप्पं, नायव्वं दसणावरणं ॥६॥ पायाः-निद्रा तथैव प्रचली, निद्रानिद्रा च प्रचलाप्रचता छ । ततश्च स्त्यानगृद्धिस्तु, पञ्चमा भवति ज्ञातव्या ॥५॥ चतुरचक्षुरबधेः, दर्शने केवले च प्रावरणे। एवं तु नवविकल्पं, ज्ञातव्यं दर्शनावरणम् ॥ ६॥ शब्दार्थ:--दर्शनावरण कर्म के नौ भेद इस प्रकार जानना चाहिए--(१) निद्रा (२) प्रचला (३) निद्रानिद्रा (४) प्रचलापचला (५) स्त्यानगृद्धि (६) चक्षुदर्शनावरण (७) अचक्षुदर्शनावरण (८) अवधिदर्शनावरण और (६) केवलदर्शनावरण" भाष्य-ज्ञानावरण के मेद बतान के पश्चात् क्रमप्राप्त दर्शनावरण के भेद वताने के लिए सूत्रकार ने इन गाथाओं का कथन किया है । दर्शनावरण के नौ भेद हैं और वे इस प्रकार हैं: (१) निद्रा जो निद्रा थोड़ी सी आहट पाकर ही भंग हो जाती है, जिसे भंग कारन के लिए विशेष श्रम नहीं करना पड़ता वह निद्रा कहलाती है । जैन श्रागमों में यह निद्रा शब्द पारिमाधिक है जो सामान्य निद्रा के अर्थ में प्रयुक्त न होकर हल्की निद्रा के अर्थ में प्रयुक्त होता है। जिस कर्म के उदय से ऐली हल्की नींद आती है यह कर्म भी निद्रा कर्म कहलाता है। (२) पचला-खड़े-खड़े या वैठे-बैठे जो निद्रा आजाती है वह प्रचला कहलाती है और जिस कर्म के उदय से यह निद्रा आती है वह प्रचला कर्म कहलाता है। (३ निन्द्रानिद्रा--जो नींद बहुत प्रयत्न करने से टूटती है-चिल्लाने से या शरीर को झकझोरले ले भंग होती है उसे लिदानिन्द्रा कहते हैं । यह निन्द्रा जिस कर्म के उदय से शाती है उसे निद्रानिद्रा कहा जाता है। (४) प्रचला प्रलला-चलते-फिरते समय भी जो नींद आ जाती है वह प्रचणा प्रचला कहलाती है । जिस कर्म के उदय से वह नींद भाती है वह प्रचला प्रचला कर्म कहलाता है। (स्लान गृद्धिजिस निला में, दिन या रारा को जागृत अवस्था में सोचा
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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