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________________ कर्म निरूपण .. - हुश्रा कार्य मनुष्य कर लेता द्वै उस निद्रा को स्त्यान गृद्धि करते हैं। ऐसी निद्रा जिस कर्म के उदय से आती है वह स्त्यान गृद्धि कर्म कहलाता है । यह निद्रा प्रायः बज्रः . वृषभनाराच संहनन वाले जीव को ही पाती है। इस संहनन वाले जीव में, इस निद्रा - . के समय वासुदेव के बल से श्राधा यल झा जाता है। यह निद्रा जिले आती है वह जीव नियम ले नरक जाता है । अन्य संहनन वालों को यह निद्रा नहीं पाती-जिसे लाने की संभावना की जा सकती है उस में भी वर्तमान काल न युवकों से साठ गुना . अाधक बल होता है। पदार्थ के सामान्य धर्म को जानने वाला उपयोग दर्शन कहलाता है। दर्शन चार प्रकार का है, अतएव उसके भावरण भी चार प्रकार के हैं। यह चार यावरण और . पांच निद्रा मिलकर दर्शनावरण के नौ भेद होते हैं। चार दर्शनों के प्रावरण यह है (६) चक्षुदर्शनावरण-प्रांच के द्वारा पदार्थ सामान्य धर्म का ज्ञान होना चक्षु वर्णन है और इसका आवरण करने वाला कर्म चक्षु-वर्शनावरण कहलाता है। . (७) अचक्षुदर्शनावरण-आंख को छोड़ कर शेष चार इंद्रियों से होने . वाला पदार्थ के सामान्य धर्म का ग्रहण चक्षुदान सहलाता है। इसे रोकने वाला कर्म अचनुदर्शनावरण कहलाता है। . 1) अवधिदर्शनावरण-अवधिशान से पहले, जो सामान्य का ग्रहण होता है उस्ले अवधिदर्शन कहते हैं। अवधिदर्शन का घाबरण करने वाला कर्म अधिदर्शगायः रण कहलाता है। (१) केवलदर्शनावरण-संसार के समस्त पदार्थों का सामान्य बोध होना केवलदर्शन है और उसका प्रावरण करने वाला कर्म केवल दर्शनावरण है . उपर्युक्त चार दर्शनों में ले केवल दर्शन लभ्यत्व के बिना नहीं होता, शेष तीन . दर्शन सम्यक्त्व के अभाव में भी होते हैं। . दर्शनावरण कर्म का बंध निम्न लिनित कारणों से होता हैः-(१) जिसे अच्छी तरह दीखता है उसे अंधा या काना कहना, और उसका अवर्णवाद करना। (-). जिसके द्वारा अपने नेत्रों को लाभ पहुँचा हो या नेत्रों के विना भी जिसने पदार्थ का यथार्थ स्वरूप समझाया हो उस्ल उपकारी का उपकार न मानना । (३) जो अवधिदर्शन वाला है उसकी या उसके उस विशिष्ट दर्शन की निन्दा करना (2) किसी के दुःखते हुए नेत्रों के ठीक होने में बाधा डालना. या चा से भिन्न किसी अन्य इन्द्रिय द्वारा होने वाले दर्शन या अवधिदर्शन अथवा केवलदर्शन की प्राप्ति में बाधा डालना। १५) जिसे कम दीखता है या बिलकुल नहीं दीखता उसे यह कहना कि-यह धूर्त है। इले साफ दिखाई देता है, फिर भी जान-बूझकर अंधा बना बैठा है। इसी प्रकार - अचनु दर्शन की मंदता वाले को छलिया-कपटी कहना । जैसे-यह तो दूसरों को . धोखा घेने के लिए मूर्ख बन रहा है ! इसी प्रकार अवधिदर्शन और केवलदशन वाले के प्रति उप का भाव रखना । (६) चनुदर्शन, अचत्तुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलादर्शन वाले के साथ झगड़ा-फसाद करना।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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