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________________ - প্রথম সত্যাৰ [ ७६ ] लक्षण दंड। दंड पुरुष म अलग हो सकता है अतएव वह अनात्मभूत लक्षण है। यहां पर्याय का एकन्य. पृथक्त्व आदि जो लक्षण बताया गया है वह पर्याय से भिन्न नहीं हो सकता अतएव वह अत्मभूत लक्षण है। . __लक्षण के तीन दोष मान गये हैं--(९) अव्याप्ति (२) शातिव्याप्ति सौर (३) अंसंभव। (१) अव्याहि-जो लक्षण सम्पूर्ण लक्ष्य में न रहे वह भव्याप्ति दोष वाला होता है । जैसे-पशु का लक्षण स्लीरा । “हां पशु लक्ष्य है, क्यों कि पशु का लक्षण बताया जा रहा है। सींग लक्षण है । यह सींग लक्षण. सम्पूर्ण पशुओं में नहीं रहताघोड़ा, हाथी, सिंह आदि पशु बिना लीग के पशु है। अतएव 'सींग' लक्षण अंव्याप्त है। (२। अतिव्याप्त-जो लक्षण; लक्ष्य के अतिरिक्त अलक्ष्य में भी रह जाय वह अतिव्याप्ति दोष वाला कहलाता है। जैसे-जल जीव का लक्षण चेतना.। यहां चेतना जल जीव का लक्षण कहा गया है किन्तु वह उस जीव के अतिरिक्ष स्थावर जीव रे भी पाया जाता है। अतएंव प स जीव और अलक्ष्य स्थावर जीव-दोनों में विद्यमान रहने के कारण यह लक्षण आतव्याप्त है। (३ ) असंभव--जो लक्षण, लक्ष्य के एकदेश या लर्व देश में न रहे वह संसव दोष से दूपित कहलाता ह जैसे-मनुष्य का लव लीग । यहां मनुष्ष खन्य है. और लींग लक्षण है। पर सींग किसी भी मनुष्य के नहीं होने सतएव यह लक्षण लक्ष्य में सर्वथा न रहने के कारण असंभव है-लक्षणाभास है। एकत्व भादि का पर्याय का लक्षण कहने का उद्देश्य यहां यह है कि एकत्व प्रादि स्वयं पर्याव-स्वरूप है, पर्याय से भिन्न-अन्य नहीं है फिर भी एकदा आदि के द्वारा पर्याय का ज्ञान होता है। . इस प्रकार द्रव्य और पर्याय का विवेचन समाप्त होता है। द्रव्य और पर्याय की प्ररूपणा ही जैनागम का प्राण है। इसे भली भांति हदयंगस्ट करके भव्य प्राणियों सो. सस्य भान प्राप्त करना चाहिए। पट्-द्रव्य-निरूपण नामक प्रथम अध्ययन . सम्पूर्ण
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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