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________________ पारबद. तृतीय परिवेद. (११३) वाल दूर करे, परंतु लोच करे नहि. ॥गाथा ॥ तह देसवब्यारि, देहिं सबसेहिं संजुङ बउसो ॥ मोह कयचमनु, हिय सुत्तमि जणियं च ॥ १॥ व्याख्याः -तथा देशलेद, सर्ववेद योग्य दोषोथी जेनुं चारित्र कर्बुर बे, परंतु जेना मनमां मोहदय करवानी छाडे, अर्थात् मनमां संयम पालवानो उत्साह बे, परंतु संपूर्ण संयम पाली शकता नथी. था पूर्वोक्त कृत्योथी संयुक्त होय तेने बकुश निर्यथ कहिये. वली सूत्रमा जे कहे जे ते हवे लखिये बियें ॥ गाथा ॥ उवगरण देह चुका, रिकि रस गारवासिया निच्चं ॥ बहु सबल बेय जुत्ता, निग्गंथा बजसा जणिया ॥१॥ आजोगो जाणंतो, करे दोसं अयाणमण नोगे ॥ मूलुत्तरे हि संवुड, विवरिय असंवुडो होश ॥२॥ अलि मुह मजमाणो, होइ अहा सुहमउँ तहा बउसो ॥ सीलं चरणं जंजस्स, कुड़ियं सो श्ह कुसीलो ॥३॥ पडिसेवणा कसाए, उहा कुसीलो उहावि पंचविहो ॥ नाणे दंसण चरणे, तवेय अह सुहुमए चेव ॥४॥हनाणा कुसीलो उवजीवं होश नाण पनिईए ॥ अह सुहुमो पुणतुस्सर, एस तव सत्ति संसए ॥५॥ व्याख्या-उपकरण, देह शुभ राखे, रस, शकि अने शाता, श्रा त्रणे गारवमां नित्य मन्न रहे, उपकरणोथी श्रविविक्त रहे परिवार जेनो बेद योग्य, सबल चारित्रसंयुक्त होय, ते निग्रंथ बकुश कहेवाय ने ॥१॥ साधुउने श्रा करवा योग्य नथी एम जाणतां बता पण जे ते काम करे तेने आजोगबकुश कहियें, अने जे अजाणपणाथी अकृत्य करे तेने अनाजोगबकुश कहियें, मूल उत्तर गुणोथी संयुक्त बे, लोक एम जाणे पण डे, परंतु गुप्त दोष लगावे तेने संवृतबकुश कहियें, अने जे प्रगटपणे मूल उत्तर गुणमां दोष लगावे तनेअसंवृतबकुश कहियें ॥२॥ तथा जे आंख, मुख प्रमुख मांजे, मलादि दूर करे, तेने यथासूक्ष्म बकुश कहिये. श्रा बकुशना पांच नेद कह्या. हवे कुशील निर्यथर्नु खरूप लखियें लिये, शील अर्थात् चारित्र, ते चारित्र जेनुं कुत्सित होय ते कुशील नियंथ, तेना बे नेद २ ॥३॥प्रति सेवनाकुशील तथा कषायकुशील, संज्वलन कषायोथी कुशील होय ते कषायकुशील. ा बनेना वली पांच नेद ते कहिये बियें. १ ज्ञान १५
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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