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________________ (११२) जैनतत्त्वादर्श. तर गुणोमां जे प्रगट दूषण लगावे ते असंवृत बकुश. नेत्र, नासिका, मुखादिना जे मल दूर करे ते सूक्ष्म बकुश. ए पांच भेद कह्या. दवे उपकरणकुशनुं स्वरूप लखिये बियें || गाथा ॥ जो उपगरणे बउसो, सो धुवा पाउसे विवहई || ईई लहयाई, किंचिविनूसाई मुंजईय ॥ १ ॥ व्याख्या:- उपकरणबकुश वर्षातु विना पण जलदा - रथी वस्त्र धोवे बे, वर्षातुमां तो सर्व गछवासी साधुर्जने श्राज्ञा बे; वर्षातु पेहेलां जो एकवार पोतानां सर्व उपकरण जलदारथी धोई लहे नहि तो वर्षातुमां मलना संसर्गंधी निगोदादि जीवोनी उत्पति थई जाय. वली बकुश निर्यय वर्षास्तु विना अन्यस्तु मां पण जलक्षारथी वस्त्रादि धोई लहे बे, तेमज सुंदर, सुकुमाल वस्त्रनी पण वांढा राखेबे, तेमज उपकरण विभूषा अर्थात् शोजाने वास्ते पण कांइक पेढेरे. ॥ गाथा ॥ तपत्त दंडयाइ, घमवं सिणेह कय तेय ॥ धारेश् विनूसा ए, बहुंच बच्चेई वगरणं ॥ १ ॥ व्याख्या ॥ पात्र, दंगप्रमुख बहुज घसीने सुकमाल करे, तथा घी, तेल प्रमुख चोपडीने तेजवंत चमकदार करी राखे, तेमज विभूषामाटे बहुज उपकरण राखवाने चाहे अर्थात् राखे. हवे शरीर बकुशनुं स्वरूप लखियें बियें || गाथा || देह बसो क घे, करचरण नहाश्यं विनू से || डुविदोवि इमोडि, इ परिवार पनिय ॥ १ ॥ व्याख्या ॥ शरीरबकुश कारण विना पण हाथ, पग, नखादिनी विभूषा करे, जलादिथी धोवे. ए प्रमाणे उपकरण तेमज शरीर बकुश निर्बंध परिवारप्रमुखनी रुद्धि वांबेबे ॥ गाथा ॥ पंडिच्च तवा इ कथं, जसच इवे तंमि तुस्सश्य ॥ सुहसीलो नयवाढं, जयइ श्रहोरत कि रियासु ॥ १ ॥ व्याख्या:- पंडितपणाथी तथा तपादिथी यशनी इछा करे ते यशनो लाज थवाथी अत्यंत खुशी थाय, तेमज सुखशी लियो याय, तेमज दिनरातनी समाचारी, क्रियामां बहुउद्यमी पण न होय ॥ गाथा ॥ परिवारोय संजम, विवित्तो होइ किंचि एयस्स । घंसीय पाउ तिल्लाई, मासणि कित्तरिय केसो ॥ १ ॥ व्याख्या:- तेनो जे परिवार होय ते संयमी होय, वस्त्रपात्रादि मोहथी दूर करे नहि, हाथ, पग तेल साबु विगेरेथी चोपडी सुकोमल राखे, तेमज दाढी, मूल छाने मस्तकना वाल कातरथी कापे अर्थात् लोचने बदले या थवा कातरथी
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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