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________________ (२७) जैनतत्त्वादर्श. तृषादि परीसहोनो संचव थये थके कायोत्सर्ग प्रमुख करीने कायाने निश्चल करवी, तथा अयोगी अवस्थामां सर्वथा कायानी चेष्टानो जे निरोध करवो, ते प्रथम कायगुप्ति. तथा गुरुश्री प्रबन्नशरीर संस्तारक, नू म्यादि प्रतिलेखन, प्रमार्जनादि, जेम शास्त्रमा कहेल , तेवी रीतें कियाकलापपूर्वक शयनादि साधुयें करवां, शयनासन लेवा, राखवा, श्रा सर्व कृत्योमा खबंद चेष्टानो त्याग करवो, मर्यादासहित कायानी चेष्टा करवी, ते बीजी कायगुप्ति. हवे अनिग्रह, प्रतिज्ञा लखिये बियें. ते अनिग्रह अव्य, देत्र, काल तथा नावथी चार प्रकारें बे. तेनो विस्तार प्रवचनसारोकारवृत्तिमा बे. आहारप्रमुखनां बेंतालीश दूषण, शास्त्रमा बतावेल बे, तोपण पिंक, शय्या, वस्त्र, पात्र, आ चारज वस्तु सदोष न ग्रहण करवी तेथी ते चार दूषण, तथा पांच समिति, बार जावना, बार प्रतिमा, पांच इंखियनिरोध, पचीश प्रतिलेखना, त्रण गुप्ति, चार अनिग्रह ए सर्व मती सित्चेर करणसित्तरीना नेद कहे .. प्रश्नः- चरणसित्तरी तेमज करणसित्तरी आ बनेमां शुं विशेष ? उत्तरः-जे नित्य करवू ते चरण, अने प्रयोजन थयां थकां करीले, अने प्रयोजन न होय त्यारे न करवू ते करण, आ तेर्डमां नेद . ए प्र. माणे चरणसित्तरी तथा करणसित्तरीना नेद समाप्त थया.. इत्यादि जैनमतना गुरुतत्वनुं स्वरूप लखवामां लाखो श्लोक लखाई जाय तो पण संपूर्ण तेनुं खरूप जाणी शकाय नहि, ते वास्ते संक्षेपमांज खरूप बताव्यु . जो विशेष जाणवानी श्वा होय तो, श्री उघनियुक्ति, श्री आचारांग, दशवैकालिक, बृहत्कल्पनाष्यवृत्ति, पंचकल्प चूर्णी, जितकल्पवृत्ति, महाकल्पसूत्र, कल्पसूत्र, निशीथ नाष्यचूर्णी, महानिशीथसूत्र, ईत्यादि पदविनाग समाचारीनां शास्त्र जो लेवां. प्रश्नः- जैनमतना शास्त्रोमां गुरुनु स्वरूप जे लखेल बे, तेवी वृत्तिवाला जैनना कोपण साधु देखवामां आवता नथी, तो पड़ी जैनमतना साधु ने था कालमां गुरु केम मानवा जोश्य ? उत्तरः-श्रा कोई गीतार्थनो परिचय कस्यो लागतो नथी, तेमज जैन मतना चरणकरणानुयोगना शास्त्रनुं अध्ययन पण कयुं होय तेम ला
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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