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________________ तृतीय परिवेद. (१०ए) गतुं नथी, अथवा तो कोश् गीतार्थ गुरुना मुखारविंदश्री वचनामृतनुं पान पण कलुं लागतुं नथी, जो आपें पूर्वोक्त कांपण कडे होत तो आपने ते बाबतनो संशय कदापि न उत्पन्न थयो होत. जैनमतमा ब प्रकारना निग्रंथ कहेला बे. श्रा कालमा जैनमतना जे साधु ने ते पूर्वोक्त ब प्रकारमध्येथी बे प्रकारना बे, कारण के श्री जगवतीसूत्रना पचीशमा शतकना बा उद्देशामां लख्यु बे के पांचमा कालमां बे प्रकारना नियंथ होशे, तेर्जनाथी तीर्थ प्रवर्तशे. कषायकुशील निग्रंथ तो कोईमां परिणाम अपेक्षा होशे, मुख्य तो बेज रहेशे. वली जैनशास्त्रमा जे गुरुनी वृत्ति लखी , ते प्रायः उत्सर्गमार्गनी अपेदा बे, अने आकासमां तो प्रायः अपवाद मार्गनी प्रवृत्ति बे, तेथी उत्सर्गवृत्तिवाला मुनि था कालमां केवी रीतें होय ? कोश्पण रीतें होई शकेज नहि, कारण के, नथी तेवु वज्रषजनाराच संहनन,के नथी तेवु मनोबल; नश्री तेवी जीवोनी श्रद्धा, के नथी तेवो देशकाल, के नथी धैर्य, तो हवे आ कालमां तेवी उत्सर्गवृत्ति जीव केम करी शके ? प्रश्न:- जो तेवी वृत्ति था कालमां नथी तो तेने साधुपण केम केहेवा जोयें ? उत्तरः-श्रा श्रापर्नु कहेवु बहुज बेसमजनुं बे. कारण के व्यवहार सूत्रनाष्यमां लख्यु डे केः-गाथा पोरकरिणी आयारे, आणयण ते गाय गीय ॥ आयरिय जएए, आहरण हुंति नायवा ॥१॥ सब परिणा बकाय, अहिगमो पिंड उत्तरिद्याए ॥ रूखे वसहे जूहे, जोहे सोहीय पुस्करिणी ॥२॥" दारगाहादो" था बंने छारगाथार्नु व्याख्यान नाज्यकारें पंदर नाष्यगाथाथी करेल . जो नाष्यगाथा जोवानी श्छा हो. यतो व्यवहारलाष्यमां जो देवी, अहियां तो ते पंदर गाथानो अर्थ नाषा (नाषांतर) मां लखिये बियें. पूर्वकालमां जेवी सुगंधमय फूलोवाली पुष्करिणी चावडीयो हती, तेवा फ्लोवाली हाल नथी, परंतु पुष्करिणी वावडीयो तोडे,लोको आ सामान्य वावडीयोथी पोतानुं काम करे ॥१॥ तथा संपूर्ण श्राचारप्रकल्प नवमा पूर्वमा हतुं, आ नवमा पूर्वमांथी उझार करीने पूज्यपाद वैशाखगणियें निशीथसूत्र रच्यु तो शुं श्रा निशीथने आचारप्रकल्प, न केहेबु जोश्य ?॥२॥ पूर्वकालमा तालोद्घा
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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