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________________ (२) जैनतत्वादर्श. रीते जगत्कर्ता ईश्वरनुं खंडन जाणवु होय तो (१) श्रीसंमतितक, (२) छादशसार नयचक्र, (३) स्याहादरत्नाकर, (४) अनेकांतजय पताका, (५) शास्त्रसमुच्चयस्याछादकल्पलतो, (६) स्याहादमञ्जरी, (७) स्याहादरत्नाकरावतारिका, (ज) सूत्रकृतांग, (ए) नंदी सिद्धांत, (१०) शब्दांनोनिधिगंध हस्ति महाजाष्य, (११) प्रमाणसमुच्चय, (१५) प्रमाणपरीक्षा, (१३) प्रमाणमीमांसा, (१४) आप्तमीमांसा, (१५) प्रमेय कमलमार्त्तम, (१६) प्रमेय दिनमातम, (१७) न्यायावतार, (१७) धर्मसंग्रहणी, (१ए ) तत्त्वार्थ, (२०) षग्दर्शनसमुच्चय, इत्यादि जैनमतना ग्रंथ जोई बेवा. ते कारणथी जे कामी, क्रोधी, कपटी, धूर्त, परस्त्री गामी, स्वस्त्रीगामी, नाचनारा, गानारा, बजावनारा, रोपीटकरनारा, जस्म लगावनारा, माला जपनारा, संग्राम करनारा, ममरु आदि वाजां वगाडनारा, वरदान अथवा शाप देनारा, विनाप्रयोजन अनेक संकटमा पडनारा, इत्यादि अढारे दूषणसहित २ ते कुदेव बे. तेने ईश्वर मानवा तेज मिथ्यात्व . श्रा कुदेवोने माननारा पटरनी नाव उपर बेग बे. ते कारणथी लखवानुं प्रयोजन एटबुं ले के कुदेवने कदापि अहंत जगवंत परमेश्वर मानवा नहि. ___इतिश्री तपागलीयमुनिश्रीबुझिविजय शिष्यमुन्यानंद विजयात्माराम विरचितजैनतत्त्वादर्शनाषांतरेकुदेव निर्णयनामाद्वितीयःपरिवेदःसंपूर्णः॥५॥ - ॥अथ तृतीयपरिछेदप्रारंजः॥ त्रीजा परिदमां गुरुतत्त्वनुं स्वरूप कहियें बियें. जैनमतमां गुरुनां लक्षण आ प्रमाणे लखेलां बेः- महाव्रतधराधीरा, जैदमात्रोपजीविनः॥ सामायिकस्थाधर्मोप, देशकागुरवोमताः ॥ १ ॥ अर्थः-अहिंसादि पांच महाव्रत धारण करनारा तथा पालनारा, अने आपत्ति समये धैर्य राखनारा, पोताना धारण करेला व्रतमां दूषण लगावी कलंकित नहि करनारा, तथा बेंतालीश दूषणरहित माधुकरी निदावृत्ति करी, पोताना चारित्र धर्मना, तथा शरीरना निर्वाहवास्ते जोजन करनारा, नोजन पण पुरूं पेट जरी नहि करनारा, नोजनने वास्ते अन्न, पाणी रात्रिमा नहि राखनारा, तथा धर्म साधननां उपकरण वर्जी बीजो कां पण
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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