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________________ वितीय परिजेद. (१) गवाववां, योनियंत्रद्वारा खेंची कढाववां, इत्यादि संकट शावास्ते रच्यां? ईश्वरें अनंतवार सृष्टि रची, अने प्रलय कस्यो, त्यारे तो थाक्या नहि तो शुं मनुष्योनेज बनाववाथी थाक चडवानो ? के घडेला घडावेला बनेला बनावेला मोकली शकता नथी ? माता पिता विना पुत्र उत्पन्न थाय ए कदापि बनी शकतुं नथी, ते हेतुथी जगत्नो प्रवाह अनादिथी तेवीज रीतें तरतमता रूपें चालतो आवेलो सिक थाय . पूर्वपद-जो कदी ईश्वर सर्व वस्तुना कर्ता न होय, अने जीवज कर्ता होय तो तो जीव पोतेजशरीर धारण करी शे. वली शरीरने कदापि बोडशे नहि, पोते पोतानां सारां फल जोगवी लेशे, अने कदी मरशे नहि. __उत्तरपदः-आपें जे कडं ते सर्व कर्मने वश , परंतु जीवने आधीन नथी, जो एम कहो के कर्मपण जीवेंज कस्यां हता, त्यारे अशुज कम जीवें केम कस्यां ? कारण के कोइपण पोतानुं बुरुं करतां नथी; श्रा वातनो उत्तर तो अपाई गयो , परंतु तमारी समजण थोडी जे तेथी समजता नथी. कारण के जीवोनी जे जे शुभ अशुन अवस्था बे, ते सर्व कर्मोनुं फल . वली जीव, कर्म करवामां तो प्रायः खतंत्रज बे, परंतु फल नोगववामां खवेश नथी. कारण के जेम कोइ जीव धनुष्थी तीर चलावे अने पढ़ी पकडवा चाहे तो ते जेम तेनामां सामर्थ्य नथी, तेमज कोई जीव विष खाय, ते खावामां तो खवश बे परंतु ते विषना वेगने रोकवामां जेम समर्थ नथी, तेम कर्म करवामां तो जीव प्रायः स्वतंत्र डे परंतु फल जोगववामां परवश . वली जेम वर्तमान कालमां रेलगाडी, तथा तार जीवोए बनावेला ते चालती रेलगाडी तथा जता तारना वेगने, जेटलो वखत तेनी कलनी प्रेरणा शक्ति बंध पडती नथी तेटलो वखत, को जीव रोकी शकता नथी, तेवीज रीतें कर्मफलना वेगने रोकवामां जीवपण समर्थ नथी. वली जीवने जवांतरमां कोण लई जाय ? तथा जीवना शरीरनी रचना, आंखोना पडदा, अनेक प्रकारना रंग बेरंगी, हाड, चामडी, लोही, वीर्य इत्यादि रचना कोण रचेने ? . तेनुं पूर्ण स्वरूप ज्यां (१४) कर्म प्रकृतिनुं स्वरूप लखशुं त्यांची जाणबु. ते हेतुथी ईश्वर जगत् कर्ता को तरेहथी सिक थता नथी. विशेष १सारासार-नहाना मोहोदा उंचनीच वा न्यूनाधिक-के समविषम सुखिदुःखी. रस्वतंत्र, ११
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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