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________________ (10) जैनतत्त्वादर्श. न्याय करे, ७ अवतार लश् गोपियो साथे कबोल करे, कुब्जा साथे जोग करे, ए बीजानी स्त्रीने जगवी लइ जाय, १० शिरपर जटा राखे, ११ त्रण आंख बनावे, १५ बेलपर चढे, १३ शरीरपर विनूति लगावे, १४ एक स्त्रीने वामाआंगमा राखे, १५ कोश् मुनिनी पासे नागा थइ नाचे, १६ कोश्ने वरदान आपे, १७ कोश्ने शाप दे, १७ चार मुख बनावी एक स्त्री राखे, १ए पोतानी पुत्री साथे जोग करे, २० संग्राम करे, १ स्त्रीने चोरी बजाय तो पड़ी ते स्त्रीने मादे रोतो फरे, २५ एक पोतानो ना३ बनावे, पळी ज्यारे संग्राममां तेने शस्त्र लागे, त्यारे नाश्ना कुःखथी बढ रोवे, २३ पोते पोताने अज्ञानी समजे, २४ नाश्नी चिकित्सा वास्ते वैद्य बोलावे, २५ सर्व कांश खाय, २६ पीये, २७ नाचे, २० कुदे,शए रोवे, ३० पीटे, पडी, ३१ निर्मल, ३२ ज्योतिःस्वरूप, ३३ निरहंकार, ३४ सर्व व्यापक; बनी बेसे इत्यादि शक्ति ईश्वरमां बे के नहि ? जो दे तो, पूवोक्त सर्व काम ईश्वरने करवां पडशे, जो नहि करे तो ईश्वरनी सर्व शक्ति सफल नहि थवानी ? पड़ी तो ईश्वर महापुःखी थर जशे. कारण के जेने नेत्र तो मलेला ,अने तेने देखवानुं न मले तो, ते केवो कुःखी थाय ? जो एम कहो के पूर्वोक्त अयोग्य शक्ति ईश्वरमां नथी, तो तो सर्व शक्तिमान ईश्वर ने एम कदापि न केहे जोश्य. जो एम कहो के योग्य शक्तिर्जनी अपेदायें अमे सर्वशक्तिमान् मानियें बियें, तो तो जगत् रचवानी शक्ति पण अयोग्यज बे, ते पण परमात्मामां नथी. ते शक्तिनी अयोग्यता, उपर लखी आव्या बियें. तथा पूर्वपदि! ज्यारे ईश्वरें प्रथम सृष्टि रची हती, त्यारे स्त्री, पुरुषो तो न होता, हवे विचारो के माता पिता विना मनुष्य केम उत्पन्न थयां हशे ? पूर्वपदः-ज्यारे ईश्वरें सृष्टि रची हती, त्यारेज बहुपुरुष, तेमज बहु स्त्रियो, माता पिता विना रच्यां हता,त्यारपडी गर्नथी उत्पन्न थवा लाग्यां. .उत्तरपदः-श्रा प्रमाणरहित केहे कोश्पण विद्वान् मानशे नहि. कारण के माता पिता विना कदापि पुत्र उत्पन्न थ शकतो नथी. जो कदी ईश्वरें प्रथम माता पिता विना पुरुष, स्त्री उत्पन्न करयां हतां तो आज पण घड्यां घडाव्यां, बन्यां बनाव्यां स्त्री पुरुष केम नथी मोकलता? गर्नधारण कराववां, स्त्रीपुरुषनां मैथुन कराववां, गर्जवासनां कुःख जो
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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