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________________ (ए) क्तिीय परिछेद, • उत्तरपक्षः- अनादि संसारनी जे नियतिरूप मर्यादा ले ते कदापि अन्यथा थती नथी. जो कदी थाय तो, संसारमा जे जीवो जन्म लहे ते सर्वे स्त्रीनाज, अथवा पुरुषनाज रूपथी केम उत्पन्न न थाय ? जो एम कहो के जेवां जेवां जेणे कर्म कस्यां होय तेवां तेवांज तेने फल मले बे, पड़ी फक्त स्त्री श्रादि स्वरूपश्रीज केम उत्पन्न थाय ? तो हवे अमे पुछिये बियें के, सर्वजीवोयें स्त्री होवानां के पुरुष होवानां जुदां जुदां कर्म केम कस्यां? एकसरखां कर्म केम न कस्यां ? उत्तरमा एम केहेशो के, संसारमा ए सनातनथी रीत डे के सर्वजीव सरखां कर्म कदापि करता नथी; त्यारे तो परमाणुमां पण सनातनथी एज खनाव डे के एकत्र कदापि मल, नहि, तेमज एकएक थर विखरा पण जq नहि. हे पूवपति! था तमारा ईश्वर जे जगत् रचे ते तमारा केदेवाश्री, अगाऊ अनंत सृष्टि रची चुक्या , तेमज एकेक जीवोने अशुनकर्मोनां फल अनंतवार दश् चुक्या , तो पण ते जीवो आजसुधी पाप कस्याज करे बे, तो हवे तेने शिदा करवाश्री ईश्वरने शुं लान थयो ? के अनंत कालथी आ विडंबनामां पड़ी रह्या ? वली ईश्वरने सृष्टि रचवा, पण शुं प्रयोजन हतुं ? पूर्वपदः- ईश्वरने सृष्टि नहि रचवानुं शुं प्रयोजन हतुं ? उत्तरपदः- वाह रे अज्ञशिरोमणि ! आ तमे शुं उत्तर प्राप्यो ? श्रा तमारा उत्तरथी विद्वान् माणस उपहास नहि करे ? ईश्वर जो सृष्टि रचे तो ईश्वरताज नष्ट थर जाय; आ वृत्तांत, उपर सारी रीतें लखी श्राव्या बियें. पूर्वपदः- ईश्वरनी जे शक्ति ने ते सर्वे पोत पोतानुं काम करने, जेम अांख देखवानुं काम करेने, कान सांजलवानुं काम करेले, तेवी रीतें ईश्वरमां जे रचनाशक्ति , ते रचना करवाश्रीज सफल थायबे, ते वास्ते जगत् रचेले. उत्तरपदः-जो तमे ईश्वरने सर्व शक्तिमान् मान्या तो ईश्वरनी सर्व शक्ति सफल थवी जोश्ये. पड़ी तो ईश्वर एक सुंदर पुरुषy रूप रचीने १ जगत्नी सर्व सुंदर सुंदर स्त्रियो साये जोग करे, चोर बनी चोरी करे, ३ विश्वास धातिपणुं करे, ४ जीवहत्या करे, ५ जूठ बोले, ६ श्र
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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