SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६२) जैनतत्त्वादर्श, श्रुति ते पण खंमन यश् गइ, तेमज " सर्व वै खल्विदं ब्रह्मेत्यादि वचनने परमात्मानो अर्थातर होवाथी द्वैतापत्ति यश् जसे, जो एम कहेशो के अनादि अविद्यात्री एम प्रतीत घायडे तो तो पूर्वोक्त दूषणोनो प्रसंग आवशे. सवत्र अद्वैतनी सिद्धि वंध्यापुत्रनी शोजा जेवी . ते कारणथी अद्वैतमत युक्तिविकत . तेथी एकज ईश्वर जगत् पेहेलां हता ए केहे मिथ्या बे, आ प्रथम ईश्वरने माननारना मतनुं खेमन ययु. हवे वीजा ईश्वर जगत्ना उपादान कारणबाला, एक ईश्वर श्रने वीजी सामग्री, श्रा बने पदार्थ अनादि . सामग्री जे जे ते नीचे मुजब डे, (१) पृथ्वी (५)जल (३) अग्नि (४) वायु आ चारेना परमाणुर्ज, () आकाश (६) दिशा (७) आत्मा (ज) मन (ए) काल आ नव वस्तु नित्य बे, अनादि, कोश्नी बनावेली नबी, ईश्वर, आ पूर्वोक्त सामग्रीत्री श्रा सृष्टिने रचेले. मतावलं वियें जेवी रीते ईश्व रने जगत्कर्ता मानेल बे ते रीति लखियें लिये. उपजातिबंद ॥कर्तास्ति कश्विजगतः सचैकः, ससर्वगः लखवशः सनित्यः ॥ श्माः कुवाकविडंवनाः स्यु, स्तेषां न येषामनुशासकस्त्वम् ॥ १॥ आ जगत् प्रत्यदादि प्रमाणधी लक्ष्य . चराचररूप त्रणे जगत् तेनो कोश् एवो पुरुष रचनार बे के जेनुं स्वरूप कही शकातुं नथी. ईश्वरने जगत्का माननारा बाढ़ी एबुं अनुमान करेले के-पृथ्वी, पर्वत, वृदादि सर्वे, बुद्धिमान् कर्त्तानां करेला बेकार्य होवायी जे जे कार्य हे ते सर्वे बुद्धिमान् कर्त्तानां करेल जे.जेबो घट तेवू आजगत् बे, ते कारणयी जगत् बुद्धिवालानुं रचे, .जेवुद्धिवाला तेज ईश्वर, एम पण न केद्देशो के आतमारो हेतु असिद्ध बे,शा कारणथी असिझने ? जुर्ड, पृथ्वी, पर्वत, वृतादि पोतपोताना कारण समूहयी उत्पन्न घयेल ते कारणथी कार्यरूप ने, तथा अवयवी ने, तेथी कार्यरूपडे, सर्ववादियोनो एवो निश्चय . तया एम पण न केहेतुं के आ तमारो हेतु अनेकांतिक ने, तथा विरुद्ध ते, कारण के अमारो हेतु विपत्थी अत्यंत दूर गयेल तया एम पण न केहेंबु के श्रा तमारो हेतु कालात्ययापदिष्ट , कारण के प्रत्यदा, अनुमान, आगमधी वाधित नथी, धर्म धर्मी अनंतर केहेवायी तथा एम पण न केहेबु के तमारो हेतु प्रकरणसम ने, कारण के अनु
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy