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________________ वितीय परिजेद. (४७) पूर्वपद-तेउँने नरकमांथी काढीने पनी स्वर्गमा स्थापन करशे; उत्तरपद-तो पडी प्रथमज नरकमां केम जवा दीधा ? पूर्वपद-ईश्वरज सर्व पुण्यपापादि करावे . जीवने आधीन कापण नथी. ईश्वर जे चाहे जे ते करावे . जेम काष्ठनी पुतलीने बाजीगर जेम चाहे जे तेम नचावे के अने पुतली खाधीन नश्री तेम. उत्तरपद-जो जीवने कां आधीन नथी तो जीवने सारा नरसानुं फल पण न जोश्ये. कारण के जो कोश् सरदार कोइ नोकरने फरमावे के तमे था काम करो पड़ी नोकर सरदारना हुकम मुजब ते काम करे, अने ते काम सारं अथवा नरसुंबे तो शुं पड़ी ते सरदार ते नोकरने कांश शिदा करी शके ले ? कांश पण करी शकता नथी. तेवीज रीतें ईश्वरनी आज्ञाथी जो जीवें पुण्य अथवा पाप कर्यां तो पड़ी पुण्य पापर्नु फल जीवोने नज मल जोश्ये, ज्यारे पुण्य पाप जीवनां कयाँ थतां नयी त्यारें स्वर्ग तेमज नरक पण जीवने न होवां जोश्य. पड़ी जीवने, नरक, खर्ग, तिर्यक् तेमज मनुष्य ए चार गति पण न होय. ज्यारे चार गति न होय त्यारे संसार पण न होय. जो संसार न होय तो वेद, पुराण, . तौरे, तजबूर, इंजिल प्रमुख शास्त्र पण न होय. ज्यारे शास्त्र न होय त्यारें शास्त्रना उपदेशक पण न होय, ज्यारे शास्त्रना उपदेशक पण होय नहि त्यारे ईश्वर पण नहि. जो ईश्वरज नहि तो पड़ी सर्व शून्यता सिक थर. था कलंक केम मटशे? । पूर्वपद-श्रा जगत् बाजीगरनी बाजी जेवू ,अने ईश्वर तेना बाजीगर जे. तेथी ईश्वर था जगत्ने रचीने खेलथी क्रीडा करे. नरक, वर्ग, पुण्य तेमज पाप कांश नथी. उत्तरपद-जो ईश्वरें क्रीडाने माटे.जगत्नी रचना करी तो क्रीडाज मात्र तेनुं फल थर्बु जोश्य. परंतु आ जगत्मा तो कुष्टी, रोगी, शोकी, धनहीन, बलहीन, महाकुःखी इत्यादि महाप्रलाप करी रह्या, जेउँने देखीने दयावश थवाथी अमारां रोम उंचां थायजे. तो शुं पड़ी ईश्वरने श्रा फुःखी जीवोने देखीने दया नथी आवती.? जो ईश्वरने दया नथी श्रावती तो पड़ी निर्दयपण कदी ईश्वर थर शकेले ? वली जे क्रीडा करवा वाला बे ते बालकनी पेठे रागी, वेषी, अज्ञानी होय . जो राग शेष ले
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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