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________________ (४) जैनतत्वादर्श. तो तेमां सर्व दूषण जे जो पोतेज अवगुणथी नरेला ने तो ते ईश्वर शेना ? ते तो संसारी जीव. वली जो राग द्वेषवाला हशे तो सर्वज्ञ कदापि न हशे; जो सर्वज्ञ नहि तो तेने ईश्वर कोण कही शकेले ? पूर्वपद-जीवोएं करेला पुण्य पापने अनुसारें ईश्वर दंड दिये , तेमां ईश्वरने शुं दोष ? जेवां जेणें ( पुण्यपाप ) कर्यां तेवां तेने फल दीधां. उत्तरपद-श्रा तमारा केहेवाथी, आ संसार अनादि सिझ थ गयो, वली ईश्वर कर्ता नहि एम सिद्ध थयु. वाह रे मित्र ? पोते पोतानी मेसेज मात थया. कारण के जे जीव हाल बे, अने जे कांश ते ने श्रहियां फल मलेल , ते पूर्वजन्ममां करेलु सिक थयु. वती जे पूर्व जन्म हतो तेमां जे फुःख सुख जीवने मलेल हतुं, ते तेनी पेहेलांना पूर्वजन्ममां कडे हतुं. तेवी रीतें पूर्व पूर्व जन्ममां कुःख सुख करवां श्रने उत्तरोत्तर जन्ममां सुख दुःखने जोगवां, एम करतां संसार अनादि सिक थाय. हवे विचारो के जगत्ना कर्त्ता ईश्वर केम सिक थया ? पूर्वपद-अमें तो एकज परमब्रह्म पारमार्थिक सप मानिये बियें. उत्तर- जो एकज परम ब्रह्म सप , तो पड़ी था जे सरल, रसाल, प्रियाल, हिंताल, ताल, तमाल, प्रवाल प्रमुख पदार्थ अग्रगामी पणे करी जे प्रतीत थाय ने ते शा कारणथी सत्खरूप नथी. पूर्वपदा-श्रा पूर्वोक्त पदार्थ जे प्रतीत थाय ने ते सर्व मिथ्या . तेमज अनुमानप्रपंच पण, मिथ्या बे. प्रतीत होवाथी जे एवा ले ते एवा बे, जेम के सीप, चांदीरूप, तेवोज आ प्रपंच . आ अनुमानश्री प्रपंच मिथ्यारूप ले अने एक ब्रह्मज पारमार्थिक सप डे. उत्तरपद-हे पूर्वपक्षि! आ अनुमान केहेवाथी आप तीक्ष्ण बुद्धिमान् नथी, तेज हवे बताविये बियें. आ जे प्रपंच तमे मिथ्यारूप मानेल ते मिथ्या त्रण तरेहनुं होय . एक तो अत्यंत असत् रूप, बीजूं ने तो कांश अन्य, अने प्रतीति होय अन्य तरेहनी, अने त्रीजु अनिर्वाच्य, श्रा त्रणे मिथ्यारूप प्रपंचमांथी कया प्रपंचने आप मानोगे ? पूर्वपद-श्रात्रणे पदमांथीप्रथमनाबे पदनोतोश्रमने खीकारजनथीत्रीजो अनिर्वाच्य पद अमें मानियें बियें. तेथी श्राप्रपंच अनिर्वाच्यमिथ्यारूप. १ तेनां कारणरूप पाप पुण्य.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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