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________________ (४६) जैनतत्त्वादर्श. श्वरें रच्या ने तो ते पद पण यथार्थ नथी, कारण के अरधा सुखी श्ररधा कुःखी एवा-पण सर्व जीव देखवामां आवता नथी. इति. पंचम पदोत्तर- पांचमो पद पण ठीक नथी, सुख थोडं अने दुःख विशेष एवा पण सर्व जीव देखवामां नथी श्रावता, परंतु सुख विशेष श्रने फुःख अल्प, एवा बहु जीव देखवामां आवे . इति. षष्ठ पदोत्तर- को पद पण समीचीन नथी. सुख घणुं अने फुःख थोडं एवा पण सर्व जीव देखवामां आवता नथी, उःख बहु अने सुख अल्प, एवा बहु जीव देखवामां आवे . आ हेतुथी ईश्वर जीवोने कोश्पण व्यवस्थावाला रची शकता नथी. तो पनी सृष्टिना कर्त्ता ईश्वर केम सिद्ध थर शके ? कदी थश् शकता नथी. तथा ज्यारे ईश्वरें सृष्टि रची न होती त्यारें ईश्वरने शुं फुःख इतुं ? अने ज्यारे सृष्टि रची त्यारे शुं सुख थयुं ? पूर्वपद-ईश्वर तो सदा परम सुखी . शुं ईश्वरमां कांश न्यूनता डे के ते न्यूनताने पूर्ण करवा वास्ते सृष्टि रचे बे. ते तो जगत्मा पोतानी ईश्वरता प्रगट करवाने सृष्टि रचे बे. उत्तर पद-ज्यारें ईश्वरें सृष्टि रची न होती त्यारें तो ईश्वरनी ईश्वरता प्रगट न होती अने ज्यारे सृष्टि रची त्यारे ईश्वरता प्रगट थर, तो प्रथम ज्यारें ईश्वरनी ईश्वरता प्रगट न होती थक्ष त्यारे तो ईश्वर बहुज उदास, तेमज अपूर्ण मनोरथवाला अने ईश्वरता प्रगट करवामां विह्वल हता. श्रा हेतुथी अवश्य ईश्वरने फुःख होवू जोश्यें. ज्यारे ईश्वर सृष्टिनी पेहेलां एवा पुःखी हता त्यारे निरुद्यमी केम बेसी रह्या हता? श्रा सृष्टिनी पेहेलां बीजी सृष्टि रचीने पोतानुं उःख केम दूर कयुं न होतुं ? पूर्वपद-ईश्वरें जे सृष्टि रची बे ते जीवोने धर्म करावीने ते ने अनंत सुख देशे. था परोपकार वास्ते ईश्वरें सृष्टि रची बे.. __ उत्तरपद-धर्म करावीने जीवोने सुख देवं ते तो तमारा केहेवा मुजब परोपकार थयो, परंतु जेठं पाप करीने नरकमां गया तेर्जना उपर शुं उपकार कयों ? ते ने उःखी करवाथी शुं ईश्वर परोपकारी थश्शके जे? १ सारो वा प्रमाणसिद्ध सत्य.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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