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________________ () वितीय परिजेद. असर्वज्ञ, निर्दय, अज्ञानी, वृथा मेहेनती इत्यादि कलंक दीधां. ते कारणथी निर्मल जीव ईश्वरें रच्या नथी ए प्रथम पदोत्तर. द्वितीय पदोत्तर-जो एम कहो के ईश्वरें पुण्यवालाज जीव रच्याले तो ते पण तमा6 केहे मिथ्या . कारण के जो पुण्यवालाज सर्व जीव हता तो गर्नमांज अंधा, लंगडा, खूला, बहेरा, मूंगा होवापणुं, मूंडं रूप, नीच अथवा निर्धन कुलमां जन्मवा पणुं, जावजीव कुःखी रेहे, खावा पीवाने पुरुं न मलवु, महाकष्टकारक मेहेनत करी पेट जरवू, आ सर्व पुण्यना उदयथी होशकतुं नथी, वली पुण्य कर्या विनाज जीवोने ईश्वरें पुण्य केम लगावी दीधुं ? जो कदी कर्या विनाज. जीवोने ईश्वरें पुण्य लगावी दी, तो तेवीज रीतें धर्म कर्या विनाज जीवोने खर्ग तेमज मोक्ष केम नथी पहोंचाडी शकता ? शास्त्रोपदेश करावीने, जूखें मरावीने, तृष्णा बोडावीने, राग द्वेष मिटावीने, घरबार तजावीने, साधु बनावीने, टुकडा मगावीने, दया, दम, दान, सत्यवचन, चोरीनो त्याग, स्त्रीनो त्याग, इत्यादि अनेक साधन करावीने पढी खर्ग मोदमां पहोंचाडवा; आ संकट ईश्वरें फोकट उत्पन्न करीने जीवोने शा माटे फुःख दीधुं. आ वातथी तो ए प्रतीत थायदे के ईश्वरने कांश समजण नथी. तृतीय पदोत्तर- जो कदी एम कहो के ईश्वरें पापसंयुक्तज जीव रच्या बे, तो पड़ी कर्या विनाज जीवोने पाप लगावी दीधा तेमां तो ईश्वरें श्रमारं सत्तानाश करी दी . हवे अमे कोनी पासे जश् विनति करियें के गुन्हा कर्या विना ईश्वर अमने पाप लगावे , जेथी आप तेमने मना करो के कर्याविना श्रमने पाप न लगावे; एवा अन्यायी ईश्वरनुं तो कदी नाम पण ले न जोयें. तथा जो ईश्वरे पापसंयुक्तज सर्व जीव रच्या बे, तो राजा, मंत्री, शेव, सेनापति धनवान् इत्यादिना घरमां उत्पन्न थर्बु, नीरोगी काया, सुंदर रूप, सुंदर शरीर, घरमा श्रादर सन्मान, बहार यशकीर्ति, पंचेंजिय, विषयजोग, इत्यादि सामग्री प्राप्त थवानो पापथी कदी संजव होतो नथी. ते. कारणथी जीवोने केवल पापवान् ईश्वरें रच्या नथी. इति. चतुर्थ पदोत्तर-जो एम कहो के अर्थोश्रर्ध पुण्य पापवाला जीव ई
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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