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________________ नवम परिछेद.. (४५१) श हाय दूर रहे. वली खरची विना मुसाफरी करे नहि. बहु निता लहे नहि. रस्तामा कोश्नो विश्वास राखे नहि. एकलो कोश्ना घरमां जाय नहि. जुनां वहाण उपर चडे नहि. एकलो नदीमा प्रवेश करे नहि. मु श्केलीवाली जगामां साधनो विना जाय नहि. अगाध पाणीमा प्रवेश करे नहि. जेउं बहु क्रोधी होय, बहु सुखशीलिया होय, तथा बहु कंजुस होय, तेवाउँनी साथे मुसाफरी करे नहि. तथा बांधवाना, मारवाना, जूगार खेलवाना, पीडाना, खजानाना, अने अंतेउरना स्थानमा गमन करे नहि. तथा बूरा स्थानमां, स्मशानमा, शून्यस्थानमां, चोकमा सूकाघासमां, कूडाकचवरमां; उंचीनींची जगामा, उकरडामां, वृदायमां पर्वताग्रमां, नदीना कांगमां, कूवाना कांगपर, आ स्थानोमां दीर्घकाल बेसे नहि. वनी जे जे कामो जे जे वखते करवां होय ते ते वखते करे, परंतु गफलत करे नहि, तेम तजे नहि. पुरुषे सुशोनित वस्त्र पहेरवानो आडंबर तजवो न जोश्ए. परदेशमा गमन करता तो विशेषे करीन तजवो जोश्ए; कारण के आडंबरथी अनेक कार्यों सिद्ध थाय . वली जे कार्यों करवा ते पंचपरमेष्टि स्मरण पूर्वक, तथा गौतमादि गणधरोनां नामग्रहणपूर्वक करे; तेमज देव गुरुनी नक्तिवास्ते धननी कल्पना करे. कारण के ज्यारे धन कमावानो प्रारंज थाय, त्यारे नफामांधी श्रमुक हिस्सो सातदेत्रोमां अवश्य लगावीश, एवी नावना अवश्य करवी जोश्ए. ज्यारे लाल प्राप्तथाय, त्यारे जावना अनुसारे मनोरथ सफल करे, कारण के व्यापारनुं फल धनप्राप्ति के अने धनप्रातिर्नु फल, धर्म कार्योमां धननो व्यय . तेम न थाय तो व्यापार करवो ते नरक तिर्यंच गति पामवानुं कारण थाय . जो धर्मकार्यमां धन खरचाय तो ते धर्मधन कहेवाय , अने जो पापकार्यमा खरचाय तो पापधन कहेवाय . धिना त्रण प्रकार . १ धर्मशकि, जोगछि, ३ पापशकि. जो धर्मकार्यमां धन वपराय तो धर्म रुछि, शरीरना जोगमां वपराय तो जोगशकि, अने धर्म, जोगथी रहित ते पापछि जाणवी. ते कारपथी निरंतर खधननो दानादि धर्मकार्यमां व्यय थवो जोश्ए. जो थोडं धन होय तो थोड़े धन धर्मकार्यमां वापर; कारण के श्वानुसारिणी
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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