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________________ अष्टम परिबेद. (३४१) राववा वास्ते अनेक आरंजनां काम करे जेथी असंख्य जीवोनी हिंसा थश् जाय, उतापि मनमां आनंद माने. पोताना, सगाना, मित्रना के कुटुंबीउँना पुश्मनोनुं चुंडं करवा, तेउँने नुकशान करवा मनमा संकल्प कर्या करे. वली मनमां विचार करे के अमुक रीतें पुश्मनो पायमाल थाय तेउनुं सत्यानाश जाय, तेउनां घर बार नाश पामे तो सारु, जेथी मारा अंतःकरणमां शांति थाय. वली राजाऊनी लडाश्नी वातो सांजली तथा उश्मन राजाना योझा नाश पामता जाणी मनमां बहुज प्रमोद माने. वली को शिकारीए व्याघ्रादि, पशुऊनो शिकार कर्यो होय ते सांजली मनमा खुशी थाय. वली एवा शिकारी तथा योझाउँनी बहुज प्रशंसा करे, जेथी ते विशेष हिंसानां काम करवा सारु उइकेराय. पोते उश्मनने मारी अत्यंत राजी थाय, मूड मरडे,अनेक तरेहथी पोतानी जयपताका फरके एवां हिंसानां काम करी आनंद माने. सारांश के बीजा जीवोनुं जेमा मालु थाय तेवां तमाम कामोमां पोते श्रानंद माने, श्रारौअध्याननो प्रथम पायो नरकगतिनो हेतु .प्राणीमात्रनुं सारं नरसुं थq ते दरेकना कर्माधीन बे, बतापि मूढ श्रात्मा अनंताकाल सुधी संसारमा परिघ्रमण करवासारु . महाअनर्थकारक उर्ध्यान ध्यातां खेशमात्र विचार करतो नथी. । २ बीजुं मृषानंद रौअध्यान. जुवं बोली, बल कपट करी, मनमां बहुज खुशी थाय; वली मनमां विचारे के में एवी युक्तिसर वात बनावीने करी डे के कोश्नी ताकात नथी के मारा प्रपंचने समजी शके. मतकबाजीपणुं एक जुदी शक्ति आज काल मारी साथे प्रपंच बाजीमां को फावी-शके एम समजवु नहि. वली बोलवू, ते पण करामात . एवा धूचना प्रसंगें, जो हुं न होत तो, शुं परिणाम श्रावत, तेनी अत्यारे शी वात? वली अनेक तरेहनां दगाबाजी, विश्वासघातनां कामो करी मनमा पोतानी चतुरा माटे बहुज खुशी थाय; वली बीजा पोताने बहुज युक्तिसर बोलनार, तथा पोते नहि फसतां, बीजाउनै जालमां नाखवाने शक्तिमान डे एम, माने , तथा एवां कामो करतां मारी वाहवाह बोलाय जे एम मा. नी बहुजं आनंद पामे. वली राज्यदरबारमां तथा बीजाउँ पासे उश्मनोनी चुगली, निंदा प्रमुख करी मनमा हर्ष पामे. इत्यादि मृषानंद रौजले.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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