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________________ ( ३७२ ) जैनतत्त्वादर्श. ३ त्रीजुं चौर्यानंद रौद्रध्यान. अनेक तरेहनां बल कपट, दगाबाजी, विश्वास घात करी, नक जीवोनी बहु मूल्यवाली वस्तु थोडी किंमत श्रापी लाइले ने मनमा खुशी थाय. वली चोरी, धाडचोरी, रस्तानी लुट, जब श्री कढाaj इत्यादि कामो करी परधन मेलवी बहुज खुशी थाय; ते.. वा चोर लूटाराउंनी पासेथी मिलकत लेवामां तेर्जने मदद करवामां ब हुज हिंमती प्रवर्त्ते ने लाभ मेलवी श्रानंद माने पोते वेपारी होय ने माल खरीद करवा घराक श्राव्यो होय, तेवे प्रसंगे विश्वास बेसाडी, नमुनो कांश्क बतावी, माल कांइक तरेहनो थापे, अने पोते सोदो कर वामां करामातवालो पोताने माने नरवामां, तोलवामां तुं श्रापवानी द्यानत राखे, चोपडामां, ठरावती वखते जाव जे बोल्या होय तेनाथी जास्ति लखे . रू प्रमुख माल बेचवामां मालमां नेल संनेल करी लेनारने बेतरी, मनमां खुशी थाय. नोकरीनो धंधो करतो जघराणी लावी खाइ जाय, अने खुशी याय; वली शेवने बल कपट करी बेतरे, छाने राजी करे, पढी मनमां विचारे के में केवी युक्ति लडावी, पैसा खाइ गयो, अने शेवने खुशी कर्या वली दगाबाजीथी पैसा मेलवी मनमां एवं अभिमान लावे के मारा जेवी कमावानी शक्ति कोनामां बे १ चोरी करी मनमां एवो खुशी याय के, मारी चतुराइ तथा शक्तिने कोण समजी शके तेवुं डे. जूठा दस्तावेज ब नावी, लोको उपर न्यायनी अदालतोमां खोटा दावा करी, फतेह मेलवी, धन न्यायची उपार्जन करी, पोताने ऋद्धि सिद्धि वालो देखी मनमां बहुज आनंद पामे. न्यायना अधिकारीने में बेतर्या, तेथी मारा जेवो कोण चालाक बे, इत्यादि चौर्यानंद रौद्रध्यान अनेक तरेहथी मूढात्मा ध्यावे. ४ चोथुं संरक्षणानंद रौद्रध्यान. नवविध परिग्रह, धन, धान्यादि बहुज वधारी मनमां खुशी थाय, लोजनो थोज नथी एवो विचार निरंतर सु करे बे, शक्तिहीन करे बे, परंतु पोते मनमां विचारे के, परिग्रह एज जगत्मां सार बे, पैसा विनाना मनुष्य पशु समान बे, तेथी परिग्रहनी इलाने लेशमात्र नहि बी करतां द्रव्य एक करवानीज चिंताराख्या करे. वली मनमां विचारे के द्रव्य मेलववुं तेमां तो ताकात बे, परंतु मेलवेलुं साचवी राखनुं, तेमां तो बहुज ताकात जोइए बीये. में करामात अजमावी न होत तो या पैसा जलवावा मुश्केल हता. वली म
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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