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________________ अष्टम परिवेद. (३६ए) बीजु अनिष्ट संयोगार्तध्यान, इंजियसुखने विघ्नकारक अनिष्ट शब्दादिनो संयोग रखे मने थाय एवी मनमां चिंता करे, वली घरमां स्त्री खराब मली होय, पुत्र कपूत थयो होय, जाइ विश्वासघाती, बे दीलवालो होय, पिता क्रोधी होय, माता पुराचरणी होय, मित्र कृतघ्न मट्यो होय, एवा प्रसंगोमां निरंतर तेऊनो उपाय करवानी चिंता थाय, वली स्त्री मनमां एवो विचार करे के,मारी शोक्य बहुज खराब , मारा पतिने रोज जुलावो खवरावे बे, रखे मने को दिन पतिवियोग करावे ? तेथी ते रांडनो का उपाय करवो जोश्ए. वली सेवक मनमा एवो विचार करे के, मारा शेग्नी पासे मारो अमुक उश्मन अवश्य चाडीखाशे, अने मारादरजाने नरम करी नाखशे, अथवा तो शेठने जू, साचुं कही मने नोकरीथी रद बातल करावशे, तो पड़ी हुं हुंकरीश, तेथी ते पुश्मननो कांक उपाय करवो जोश्ए. तेवे प्रसंगें, तेना निग्रह वास्ते, यंत्र, मंत्र, कारण, वशीकरण प्रमुख करे. ते उपर जूगं कलंक मूके, बलिदान देवावास्ते त्रसजीवने मारे, श्रा सर्व पोताना शत्रुना निग्रह वास्ते करे. वली मूठ मारी तथा वीर नाखी मारवा चाहे, परंतु मूर्ख मनमां विचारे नहि, के जोतुं दीलमा साचो बो, तो तने रुं फिकर ने ? वली ज्यां सुधी सामानुं पुण्य बलवान् , त्यांसुधी तुं मंत्र, यंत्रथी तेनुं कांश पण बुरुं करवाने शक्तिमान् नथी. वली पोताना मनमा एवो कुविकल्प करे के मारा उश्मनना कुलमां अमुक सख्स जबरदस्त उत्पन्न थयेल डे, रखे मने नविष्यमां हेरान करे? को रीतें तेनी राज्य दरबारमा श्राबरु जाय, अथवा दंड थाय तो ठीक जे. वली जो तेनुं बिन मली जाय तो सरकारने अरज करी तेने देश निकाल करा. या प्रमाणे मूर्ख, मूढ जीव संकल्प कर्या करे . वली गाममां चोरनो उपजव ब- हुज थयो , तेथी ते पुष्टोने पकडी सख्तशिवा थाय, अथवा तो फांसीए देवाय तो सारं. वली अमुक सख्स बहुज फाटी गयो बे, मारी उपर ईर्ष्या करे , तेथी ते हरामजादानो कांश्क बंदोबस्त करवो जोशए; जेथी फरी ईर्ष्या निंदा न करे, श्रा प्रमाणे निरंतर असत्य वि. कल्पो करे तो अनर्थदंड लागे . कारण के आपणा बुरा चिंतवनथी बीजा- कांश बगडतुं नथी. जे कांश सारं नरसु थाय बे, ते पुण्य, पापने ४७
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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