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________________ (३६७) जैनतत्त्वादर्श. के केटली एक वनस्पति अति कोमल अवस्थामां अनंतकायपण होयने, ते खावाथी अनंतकायनो व्रतजंग थाय. आ पांचमो अतिचार, हवे बाग्माअनर्थदंड विरमणव्रत, खरूप कहियें जियें. पोतानाप्रयोजनवास्ते करवू ते अर्थदंड कहेवाय . धन, धान्य देत्रादि नवविध परिग्रहमा हानि वृद्धि थाय, त्यारे करे, कारण के धनवृद्धिने निमित्ते संसारी जीवने बहुपापनां कारणो सेवां पडे, तेवे प्रसंगे साचुं, जुलै बोल्याविना रही शकातुं नथी. पापना उपकरणां पण मेलववां पडे, ज्यारे कांश मनसुबो करवो पडे, त्यारे विकल्परूप आर्तध्यान करवू पडे, कारण के धनादि परिग्रह अजीविका अर्थे जरूरना , तेवास्ते धननी वृद्धि निमित्ते जे जे पाप करवामां आवे ते ते सर्व अर्थदंकडे, वली ज्यारे धननी हानि थायडे, त्यारे धननी हानि दूर करवा वास्ते अनेक विकल्प रूप पाप करवां पडे, तेपण अर्थदंड; कारण के धन, व्यवहार संसार सुखनु मुख्य कारण , ते व्यवहार वास्ते जे जे पाप करवां पडे ते सर्व अर्थदंड . वली पोताना वजन कुटुंब परिवारादि वास्ते अवश्य जे जे पाप सेववां पडे, ते ते सर्व अर्थदंड बे; अने चोथु, पांच प्रकारनी इंजियोना जोगवास्ते जे पाप करवां पडे ते पण अर्थदंड जे. पूर्वोक्त चार प्रयोजनविना जे पाप करवामां आवे ते अनर्थदंड जाणवां. तेना चार नेद २. १ अपध्यान अनर्थदंड,श्पापोपदेश अनर्थदंड, हिंसाप्रदान अनर्थदंड, ४ प्रमादाचरित अनर्थदंड. तेमां प्रथम जे अपध्यान अनर्थदंड डे, तेना वली बे नेद. १ आर्तध्यान; २ रौऽध्यान; तेमां बार्तध्यानना चार नेद बे, ते पृथक् पृथक् कहिये बियें. १प्रथम इष्टवियोग आर्तध्यान. पोताने प्राप्त थयेला नवविध परिग्र. हनो रखे वियोग थाय, एवं चिंतवन निरंतर मनमा लाव्या करे, श्रने कदाचित् तेनो वियोग थाय तो मनमां घणोज खेद धारण करे, श्रने निरंतर तेने वास्ते विलोपात कर्या करे, तेमज पोताना वहालां माता, पिता, पुत्र, पुत्री, जार्या नाइ, बेहेन, मित्रादि परदेश गयां होय, अथवा तो मृत्यु पाम्यां होय ते प्रसंगे अत्यंत चिंता करे, खाय पीये नहि, वियोगना दुःखथी आत्मघात करवानो विचार करे, निरंतर क्रोधातुर रहे, इत्यादि प्रसंगे, जे चिंतवन थाय ते वार्तध्यान बे.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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