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________________ (३४) जैनतत्वादर्श. थी केल फलीत थती नश्री. तथा अतिथिनी जक्ति वास्ते मांसर्नु अर्पण नरकपातनो हेतु होवाथी, महा अधर्मनुं कारण .श्रा बाबतमां को एवो सवाल करे के, जे वात श्रुति, स्मृतिमां , ते मानवी जोशए. उत्तरः- श्रा कथन वास्तविक नथी. जे वात श्रुति, स्मृतिमा अप्रा. माणिक होय, ते बुद्धिमान् कदापि मानेज नहि,कारण के श्रुतिमां श्रमे एम सांजलीए बीए के “वचांसि नूयांसि यथा पापन्नोगोस्पर्शःमाणां च पूजागादीनां च पूजागादीनां च वधः खर्ग्यः ब्राह्मण जोजनं पितृप्रीणनं मायावीन्यधिदैवतानि वह्नौ हुतं देवप्रीतिप्रदं” श्रावं कथन जे श्रुतियोमा बे, तेने युक्तिकुशल पुरुष कदापि मानशे नहि; तेथी मांसथी देवतानी पूजा करवी ते महा अज्ञानता . वली केटलाएक कहे बे के, जेम मंत्रथी संस्कृत, अग्नि दाह करतो नथी, तेमज मंत्रथी सं. स्कार पामेलुं मांस दोषकारक रहेतुं नथी. था कथन मनुजीतुं ॥ यथा ॥ संस्कृतान् पशून् मंत्र, नाद्याहिप्रः कथंचन ॥ मंत्रैश्च सं. स्कृतानद्या, बाश्वतं विधिमास्थितः ॥१॥ अर्थः- मंत्रथी श्रसंस्कृत पशुउनुं मांस ब्राह्मण न खाय, अने मंत्रथी संस्कृत पशुतुं मांस खाय तो, शाश्वता नित्य वैदिक विधिमा रहेलो एम जाणवो. श्रा बाबतमा समाधान ए के, मंत्रथी जे मांस पवित्र करवामां श्राव्युं होय, ते पण धर्मी पुरुष कदापि नदण न करे, कारण के मंत्र जेम अग्मिनी दाहकशक्तिने रोके, तेम नरकादिप्रापण शक्ति जे मांस नी, तेने दूर करवाने मंत्रा शक्ति नथी. जो तेवी शक्ति मंत्रमा होय तो, दरेक पाप करीने, पडी ते पापना नाशकरनार मंत्रनुं स्मरण करवा मात्रयीज ते पाप नाश थई जाय, जो ए प्रमाणे होय तो वेदोमां पापनो निषेध करेलो , ते कथन सर्व निरर्थक समजवं; कारण के सर्वपाप मंत्रस्मरणथीज नाश थाय बे, पडी निषेध करवानी शी जरुर हती ? ते कारणथी आ पण अज्ञानीनुज कथन . वली केटलाएक कहे जे के जेम थप मद्यपानथी निस्सो चडतो नथी, तेम थोडं मांस खावाथी पाप लागतुं नथी. . उत्तरः-- थोडं पण मांस बुद्धिमान् खाय नहि. जेम थोडं पण विष पुःखदायक थाय , तेम थोडं पण मांस दोषरूप थाय डे.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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