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________________ अष्टम परिवेद. (३४७) प्रश्न:-मांसाहारी पोते पोताने अधर्मी केम बनावे ? उत्तरः-मांसना खादमा बुब्ध थवाश्री, तेजे दया के धर्म का पण जाणता नथी. कदाचित् जाणवामां आवे तो पण मांसलुब्ध थर जवाथी मांसने तजवाने समर्थ रहेता नथी. ते कारणथी मनमा विचारे ने के आपणी समान बीजाउँ थर जाय तो कोश निंदा करे नहि, तेथी पोते बीजाने मांसलक्षण नहि करवानो उपदेश करी शकता नथी. . • केटलाएक मूढमति पोते तो मांस खाता नथी, परंतु देवता, अतिथि श्रने पितरोने माटे मांसनो उपयोग करे . तेना शास्त्रकार कहे के ॥ यथा ॥ क्रीत्वा स्वयं वा उत्पाद्य, परोपहतमेव वा ॥ देवान् पितॄन् समज्यर्च्य, खादन् मांसं न दृष्यति ॥ १॥ अर्थः-आ श्लोक मृगपदिना विषयमा ने. कसाश्नी उकान विना, पारधी तेमज शिकारी, श्रने जानवरोने मारनारा पासेश्री मूल आपीने मांस लेवु श्रने ते देवता, अतिथि तेमज पितरोने आप जोशए; कारण के कसाश्नी उकानना मांसश्री देवता, पितरोनी पूजा यश् शकती नथी, तेथी पोते मांस उत्पन्न करीने पितृयादिने थापे तो ते प्रसन्न थाय. पोते मांस था प्रमाणे - त्पन्न करे. ब्राह्मण, मागीने मांस लावे, क्षत्रिय शिकार करीने मांस लावे अथवा कोए मांसनी नेट करी होय, तो ते मांसपी देवता पितरोनी पूजा करीने, पनी पोते मांस खाय तो दोष नथी. था कथन, महामूढ तथा मिथ्यादृष्ठिउनुज बे; कारण के दयाधर्मी, आस्तिकमतवालाउँने तो मांस दृष्टिथीपण जोवू योग्य नथी, तो पड़ी देवता, अतिथिर्नुपूजन मांसथी करवं, या विचार खप्नमांपण तेउने केम श्रावे ? वली देवताउने मांस चढाव, ते बुद्धिमान्नुं काम नथी, कारण के देवता तो महापुएयवान् बे, केवल थाहार करता नथी, तो वो पुगंडा उत्पन्न करे तेवो आहार देवता केम ग्रहण करे ? तेथी जे देवताउँने मांसाहारी कहे जे, ते महाअज्ञानी . वली पितरो, पोतपोताना पुण्य पापने अनुसारें, सारी अथवा माठी गतिने प्राप्त थयेला बे, ते ते गतिमां पोताना कर्मनां फल जोगवे , अने पुत्रना करेला कर्मनां फल तेउँने काश्पण लागतां नथी, तो हवे मांस श्रापवाना पापर्नु तो झुंज कहेवू ? पुत्रादिना सुकृतनां फलपण तेउँने पहोंचतां नयी; कारण के आंबाने सेचन करवा
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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