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________________ (३०) जैनतत्त्वादर्श, वात सर्वसुज्ञ जनोने विदित . ते कारणथी जे जे काम करवां ते सर्व यत्तापूर्वक जीवरक्षाथी करवां ते अव्यदया समजवी. २ बीजी जावदया. बीजा जीवोने गुणप्राप्ति वास्ते, तथा उर्गतिमां पडतां जीवोना रक्षणवास्ते, अंतःकरणमां अनुकंपा बुद्धिसंयुक्त तेर्डने हितोपदेश करवो ते नावदया . त्रीजी स्वदया. पोताना आत्मानी. अनादि कालथी मिथ्यात्व अशुद्ध उपयोग, अशुद्धश्रद्धानपूर्वक अशुद्धप्रवृत्ति, तथा कषायादि नाव शस्त्रोश्री समये समये, आत्माना ज्ञानादिगुणोरूप जावप्राणोना घातरूप, हिं. सा थया करे , एवी जिनेश्वर जगवान्नी वाणी श्रवण करवाथी पूर्वोक्त नावशस्त्रोनो त्याग करीने, स्वसत्तामा प्रवृत्ति करीने, शुद्धोपयोग धारण करीने, विषय, कषायथी दूर रहीने, अने शुज अशुज कर्मफलना उदयमां अव्यापक रहीने अर्थात् सुखःखमां हर्षविषाद न करता, प्रतिक्षण अशुज कर्मने निदान दूर करवानी जे चिंता तेनुं नाम स्वदया . आ स्वदयानी रुचिवाला जीव पोतानी परिणति शुद्ध करवा वास्ते जिनपूजा, तीर्थयात्रा, रथयात्रा प्रमुख शुजप्रवृत्ति करे, बहुमान पू. र्वक जिनगुणामृतनुं पान करे, असत् प्रवृत्तिथी चित्तने हगवी तत्त्वावलंबी करे, पुजलावलंबीपणुं हगवे, आ शुन आश्रवमां यद्यपि देखवामां केटलाएक जीवोनी हिंसा मालम पडे बे, तोपण आत्मानी अशुद्ध परिणति दूर थवाथी आत्मा गुणग्राही थाय बे, ज्यारे गुणग्राही थाय बे, त्यारे ज्ञानवान् थाय बे, ते कारणथी सर्वसाधक जीवोने आ स्वदया परम साधन . या स्वदया वास्ते साधुपण नवकल्पी विहार करे , उपदेश आपे , चर्चा करेजे, तथा पूजन, प्रतिलेखन करे . यद्यपि नदी नाला उतरतां तथा अन्य कार्यपरत्वे योगोनी चपलताथी आश्रव थाय , तोपण चेतनस्वरूप अनुयायी रहे, जिनाझा पाले , कषाय स्थानमंद करे , स्वबंदता दूर करे बे, अने धर्म प्रवृत्तिनी वृद्धि करे . आ स्वदया वास्ते साधुपण शुजाश्रव पोताना कल्पप्रमाणे आचरण करे बे, परंतु श्रा आश्रव साधक दशामां बाधक नथी. ४ चोथी परदया, अर्थात् ब कायना जीवोनी रक्षा करवी. ज्यां स्वदया ले त्यां परदया निश्चयपूर्वक बे, अने ज्यां परदया बे, त्यां
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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