SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तमस परिवेद. (३०१) खदयानी जजना बे, अर्थात् होय पण खरी श्रने न होय पण खरी. ५ पांचमी खरूपदया. श्ह लोक, परलोकना विषयसुखवास्ते तथा लोकोनी देखादेखीश्री जे जीवनी रक्षा करवी ते खरूपदया . आ दयाथी विषयसुख तो प्राप्त थायडे, परंतु देडकाना चूर्णनी जेम संसारनी वृद्धि थाय ने. खरूपदया देखवामां दया बे, परंतु जावें हिंसाज . . ६ बही अनुबंधदया. श्रावक मोटा आडंबरथी मुनिने वांदवा वास्ते जाय, तथा उपकार बुद्धिथी बीजा जीवोने सन्मार्गमा लाववावास्ते ताडना तर्जना करे, कोश्ने शिक्षा पण आपे. ए प्रमाणे करतां, देखवामां तो हिंसा बे, परंतु अंते खपरने लाजनुं कारण होवाथी दया . वली साधु, आचार्य पोतानां शिष्य शिष्याउँने तेउनीनूल याद करावे , योग्य प्रसंगें शिक्षा करे , कोश्ने अनुचित करतां निवारे , कोश्ने एकवार कहे , कोश्ने वारंवार कहे , तथा शिदा करे , को उपर क्रोधपण करे , शासनना प्रत्यनीकने पोतानी लब्धियी दंडपण आपे , इत्यादि कामोमां यद्यपि हिंसा देखाय बे, तो पण फल दयानां बे. सातमी व्यवहारदया. जे विधिमार्ग अनुयायी जीवदया पाले, सर्व क्रियाकलाप उपयोगपूर्वक करे ते व्यवहारदया बे. आग्मी निश्चयदया. शुद्ध साध्य उपयोगमा एकत्वनाव, अन्नेद उपयोग, साध्यानावसां एकताज्ञान, ते निश्चयदया. आ दयाथी उपरना गुणस्थानकोमा जीव आरोह करे , तेथी था दया उत्कृष्ट ने; इत्यादि अनेक प्रकारथी दयाना खरूपविज्ञानपूर्वक, सूत्र, नियुक्ति, नाष्य, चूर्णी, वृत्ति पंचांगी सम्मत, प्रत्यदादि प्रमाणपूर्वक, नैगमादि नय, नामादि निदेप, सप्तनंगी, ज्ञाननय, क्रियानय, निश्चय व्यवहार नय, तथा अव्यार्थिक पर्यायार्थिक नय, इत्यादि उजय जावमा यथावसरें अर्पित, श्रनर्पित नयनिपुणताथी, मुख्य गौण नावें उन्नयनयसम्मत, शुभस्याद् वादशैलीविज्ञानपूर्वक, श्रीसिद्धांतोक्त दान, शील, तप, जावनारूप शुजप्रवृत्ति तेनुं नाम शुक्रव्यवहार धर्म कहियें. बीजो निश्चय धर्म. ते पोताना आत्मखरूपने जाणवू तथा वस्तुना स्वजावने जाणवो, जेम के मारो आत्मा शुद्ध चैतन्य रूप, असंख्यात प्रदेशी, अमूर्त, स्वदेहमात्रव्यापी, सर्व पुजलोथी जिन्न, अखंड, अलिप्त,
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy