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________________ (२९६) जैनतत्त्वादर्श. वादवाक्य, केहेवां, ते उत्सर्ग, अपवाद कदी पण थश् शकतां नथी. परंतु जे अर्थवास्ते शास्त्रमा उत्सर्ग कहेल होय. तेज अर्थवास्ते अपवाद के हेवो जोश्ये; त्यारेंज उत्सर्ग अपवाद थश्शके ले. ते बंने उन्नत निम्नादि (उंचां नीचां) व्यवहारवत् परस्पर सापेक्ष होवाथी एक श्रर्थनां साधक थर शके . जेम के जैनोए संयम पालवा अर्थे नवकोटि विशुद्ध थाहार ग्रहण करवो, ते उत्सर्गमार्ग . तेवीज रीतें अव्य, क्षेत्र, काल, जावथी आपत्तिमां पडतां गत्यंतरना अनावथी, पंचकादि यत्नापूर्वक श्रनेषणीय श्राहारादिने ग्रहणकरवा ते अपवादमार्ग बे, तेपण संयम पालवाने वास्तेज . एमपण न केहेवू के जेसाधुने मरणज एक शरण , तेने गत्यंतर अनावनी असिकि.॥ उक्तं चार्षिनिः॥ सबब संजमं सं जमाउँ, अप्पाणमेवर खिज॥मुच्चश्शश्वाया, पुणो विसोहीनया विर॥॥श्त्यागमात् ॥नावार्थः-सर्वरीतें संयम पालवो,जो संयममां दूषण लागवाथी प्रा. पनी रक्षा थती होय तो संयममां दूषण पण लगावीने रक्षण करवू, प्राण रेहेवाथी प्रायश्चित्तधारा ते पापथी मुक्त थ शुरू थवाशे, अने अविरतिपणुं पण रदेशे नहि. वली आयुर्वेदमां पण कडं बे के, जे वस्तु को रोगमां को अवस्थामा अपथ्य बे, तेज वस्तु तेज रोगमां बीजी अवस्थामा देश, काल जो श्रापे तो पथ्य बे. देशादि अपेक्षाए ज्वरवालाने दहीं पण खावा देवामां आवे . तथा च वैद्याः॥ कालाविरोधि निर्दिष्टं, ज्वरादौ लंघनं हितं ॥ तेऽनिलश्रमक्रोध , शोककामकृतज्वरात् ॥१॥जेम प्रथम अपथ्यनो परिहार करवो, अने बीजी अवस्थामा तेनेज जोगवावां, था बंने प्रसंगें रोगर्नु निवारण करवानुं प्रयोजन . तेथी एम सिक श्राय डे के एकज वस्तुविषयक उत्सर्ग अपवाद . तमारो उत्सर्ग एक अर्थवास्ते में, अने, श्रदवाद बीजा अर्थ वास्तेबे. जुर्ज. "न हिंस्यात् सर्वजूतानि" था जे उत्सर्ग , ते ऽर्गतिना निषेध वास्ते बे, अने जे तमारी अपवाद, हिंसा , ते देवता, अतिथि, पितुनी प्रीतिसंपादन अर्थे . ते कारणथी परस्पर निरपेक्ष होवाथी, उत्सर्ग, अपवाद विधि थश् शकता नथी. हवे विचारो के तमारो अपवाद, उत्सर्गविधिथी केवीरीतें बलवान् थ शकेले ? एम पण न कहेवू के वैदिक हिंसानो जे विधि , ते खर्गहेतु हो
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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