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________________ चतुर्थ परिच्छेद . (ILU) ज्योवेदवाक्येयो, यथार्थत्व विनिश्चयः ॥ १ ॥ सारांश के अतींद्रिय पदानो को साक्षात् दृष्टा नथी. बीजो पक्ष मानशो तो दूषणवाला (अ. सर्वज्ञ) कर्त्तानां 'शास्त्री उपर विश्वास थतो नथी. जो कहो के पौरुषेय बे, तो संभवज थइ शकतो नथी. खरूप निराकरणाथी घोडाना भृंगरूप पुरुष क्रियानुगत तेनुं रूप बे, सारांश के पुरुषक्रिया बिना ते केवी रीतें शके बे ? ते कारणथी जे साक्षर वचन बे, ते पौरुषेयज बे, कुमार संजवादि वचननी जेम. वेद पण वचनात्मकज बे " तथा चाहुः ॥ ताल्वा दिजन्मा नतु वर्णवर्गों, वर्णात्मकोवेद इति स्फुटं च ॥ पुंसश्च ताब्वादिरतः कथं स्या, दपौरुषेयोयमिति प्रतीतिः ॥ १ ॥ इति " श्रुतिने छापौरुषेय गीकार करी, तो पण तदर्थव्याख्याने पौरुषेयज अंगीकार करी बे. श्रन्यथा “ श्रग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकामः " तेनो अर्थ " स्वमांसं नक्षयेत् इति " एम नियामकना श्रमावधी केम न थई जाय ? ते कारणथी शास्त्राने पौरुषेयज मानवां ते श्रेय बे. तमारा इथी कदी वेद अपौरुषेय मानियें, तो तेथी वेदनी प्रमाणता थशे नहीं, कारण के प्रमाणता आप्त पुरुषने धीन बे. ज्यारे वेद प्रमाण न थया, त्यारे ते वेदनुं कथन, तथावेदानुसारिणी स्मृतियो पण प्रमाणभूत घयां नहीं, तेथी हिंसामय यज्ञ तथा श्राद्धादिविधि पण प्रमाणथी विरुद्ध थया. पूर्वपक्ष:- “न हिंस्यात् सर्वभूतानि " इत्यादिथी जे हिंसानो निषेध करेलो बे, ते औत्सर्गिकमार्ग बे, अर्थात् सामान्य विधिबे, वेदवि हिता जे हिंसा बे ते अपवाद मार्ग बे. अर्थात् विशेष विधि बे. ते कारथी, तथा अपवाद उत्सर्गथी बलवान् होवाथी वेदविहिता हिंसा दोधनुं कारण नथी " उत्सर्गापवादयोरपवाद विधिर्बलीयानिति न्यायात् " त मारा जैनमतमां पण हिंसाना एकांत निषेध नथी. केटलांएक कारणोमां पृथ्वी कायादि जीवोनी हिंसा करवानी थाज्ञा बे. वली ज्यारे साधु रोग पीडित थाय बे, तेमज असमर्थ छाने ग्लान थाय बे, त्यारे आधाकर्मादि आहार ग्रहण करवानी पण आज्ञा बे, तेवीज रीतें श्रमारा मतमां याझिकी हिंसा देवता, अतिथिनी प्रीतिवास्ते पुष्ट श्रालंबनरूप होवाथी अपवादरूप बे, ते कारणथी तेमां दोष नथी. उत्तरपक्ष:- अन्यकार्यवास्ते उत्सर्गवाक्य, अने अन्यकार्यवास्ते अप
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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