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________________ (१६) जैनतत्त्वादर्श. मदिरापानिना प्रलाप जेवू . कारण के तमे प्रथम पक्षमां काल एकांत एक नित्य व्यापी मानेल बे, तो हवे केवी रीते ते कालनो पूर्वापर व्यवहार होय ? पूर्वपक्षः-सहचारिना संगथी एक वस्तुनो पण पूर्वापर कल्पनामात्र व्यवहार यश् शके . जेम सहचारि जरतादिना पूर्वापर व्यवहार ने, तेवीज रीतें जरतादि सहचारियोना संगथी कालनो पण कल्पनामात्र पूर्वापर व्यपदेश थाय ने. सहचारियोथी व्यपदेश, सर्व तार्किकोना मतमां प्रसिद्ध . यथा, “ मंचाःक्रोशंतीति" जेम मंचा गालो दीये. उत्तरपक्षः-या पण असमंजस कथन . कारण के श्रा कथनमां श्तरेतर दोषनो प्रसंग आवे बे. ते कहिये डिये. सहचारि नरतादिनो कालना योगयी पूर्वापर व्यवहार थयो, अने कालनो पूर्वापर व्यवहार, सहचारि जरतादिना योगयी थयो; जो एक सिझ नहि थाय तो बीजुं पण सिक नहि थाय. उक्तं च ॥ एकत्वव्यापितायां हि, पूर्वा दित्वं कथं जवेत् ॥ सहचारिवशात्तच्चे, दन्योन्याश्रयतागमः ॥ १॥ सहचारिणां हि पूर्वत्वं, पूर्वकालसमागमात् ॥ कालस्य पूर्वादित्वं च, सहचार्यवियोगतः ॥२॥ प्रागसिकावेकस्य, कथमन्यस्य सिकिरिति ॥ ते कारणथी प्रथम पद श्रेय नथी. __ जो बीजो पक्ष मानशो तो ते पण अयुक्त बे. कारण के समयादि रूप परिणामी कालविषे काल एकज ने तोपण विचित्रपणुं उपलब्ध थाय . जुर्ड. एक कालमां मगने रांधतां को रंधाय बे, को रंधाता नथी, तथा समकाल एक राजानी नोकरी करता थकां एक नोकरने अल्प कालमांज नोकरीनुं फल मली जाय , अने बीजाने बहु काल व्यतीत थया उतां पण ते फल मलतुं नथी; तथा समकालें खेती करतां बतां एक खेडुतने बहु धान्य उत्पन्न थाय बे, अने बीजाने अल्प, बगडेलु तेमज खंमित उत्पन्न थाय बे; तथा समकालें कोडीउनी मूठी जरीने जमीन उपर नांखिये तो केटलीएक कोडी चती पडे , अने केटलीएक जंधी पड़े बे. हवे जो कालज एकवू कारण होय तो सर्व मग एकज कालमा रंधावा जोश्ये, परंतु तेम यतुं नथी, इत्यादि, ते कारणथी निःकेवल कालज जगतनी विचित्रतानो कर्ता नथी. परंतु
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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