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________________ चतुर्थ परिजेद. (१७) कालादि सामग्रीना मलवाथी कर्म कारण बे, श्रा सिझ पद . इति प्रथम कालवादिना मतनुं खंमन. बीजा ईश्वरवादी अने त्रीजा अद्वैतवादी श्रा मतोनुं खंमन ईश्वरवादमां लखी आव्या बिये, त्यांथी जाणी लेवू. हवे चोथो मत नियतिवादियोनो ने तेनुं खंमन लखिये बिये. नियति वादी कहे के सर्व पदार्थना कर्त्ता नियति बे. जे तत्त्वांतर थाय ते नियति केहेवाय. ते नियति पण ताडन पामती अति जीर्ण वस्त्रनी पेठे विचाररूप ताडनाने नहि सहन करी शकती सेंकडो कटकाने प्राप्त थाय . ते कहिये बियें. हे नियतवादि ! तमारं जे नियतिनाम तत्वांतर ते जावरूप जे के अनावरूप जे? जो कहो के नावरूप दे तो पड़ी एकरूप के अनेकरूप जे? जो कहो के एकरूप में, तो वली नित्य ले के अनित्य बे ? जो कहो के नित्य ने तो पदार्थोनी उत्पत्ति श्रादिमां केवीरीतें हेतुरूप ले ? कारण के जे नित्य होय जे ते कोनुं पण कारण थ शकतुं नथी. कारण के जे नित्य जे ते सर्व कालमा एकरूप होय . नित्यनुं लक्षण-"अप्रच्युतानुत्पन्न स्थिरैकखजावतया नित्यत्वस्य व्यावात् " एबुं बे. जे करे नहि, तेमज उत्पन्न पण न थाय, स्थिर एक खन्नावथी रहे ते नित्य. हवे जो नियति ते नित्यरूपथी जो कार्य उत्पन्न करे तो तो हमेशां तेजरूपथी कार्य उत्पन्न करे, कारण के तेना स्वरूपमां कांपण विशेष नथी एकज रूप बे, अने हमेशां तेजरूप थी तो कार्य उत्पन्न करती नथी, कारण के कदी एक जातनुं तो कदी बीजी जातवें कार्य उत्पन्न अतुं देखिये जियें. वली एक बीजी पण वात ए बे के जे बीजा, त्रीजा, आदि क्षणमां नियतिने कार्य करवानुं डे, ते सर्व कार्य प्रथम दणमांज उत्पन्न करी बेवु जोश्ये, कारण के ते नियतिनो जे नित्य करणस्वन्नाव बीजा, जीजा श्रादि क्षणमां ने ते स्वजाव प्रथमदणमां पण विद्यमान ले. जो प्रथम क्षणमां द्वितीयादि क्षणवर्ती कार्य करवानी शक्ति न होय तो द्वितीयादि क्षणमां पण कार्य न थर्बु जोश्ये. कारण के प्रथम द्वितीयादि क्षणमां कांश पण विशेष नथी. जो प्रथम द्वितीयादि दणमां नियतिना रूपमा परस्पर विशेष मानशो तो तो खाजाविक रीतें नियतिना रूपमा अनित्यता आवी जशे. “श्रताद
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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