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________________ (१२७) जैनतत्त्वादर्श. जो नियति बाधित थई जाय तो बीजे स्थले प्रमाण मिथ्या थई जशे. तथा चोक्तं ॥ नियतैनेवरूपेण, सर्वे नावा नवंति यत् ॥ ततो नियति जाह्येते, तत्स्वरूपानुबंधतः॥ १॥ यद्यदेव यतो यावत्, तत्तदेव ततस्तथा ॥ नियतं जायते न्यायात्, कएनां बाधितुं नमः॥२॥ आ बंने श्लोकनो श्रर्थ उपर लख्यो . पांचमो विकल्प खनाववादियोनो के. खन्नाववादियो कहे जे के आ संसारमा सर्व पदार्थ स्वनावधीज उत्पन्न थाय ने ते कहे जे के माटीथी घट थाय ने, परंतु वस्त्र यतुं नथी, तेमज तंतुथी वस्त्र थाय डे परंतु घटादि यता नश्री, आ जे मर्यादापूर्वक थर्बु ले ते खजाव विना कदापि थई शकतुं नश्री. ते कारणथी जगत्मां जे काई थाय ने ते सर्व स्वजावश्रीज थाय बे. वली बीजां कार्य तो दूर रहो परंतु या जे मगर्नु रंधावू बे, ते पण स्वनावविना थतुं नथी, कारण के हामी, इंधन, काल प्रमुख सामग्री विद्यमान बतां (कांगडु) करडु मग रंधाता नथी याने पाकता (चडता) नथी; ते कारणथी जे जेना सदनावें विद्यमान होय, तेमज असदनावें विद्यमान होय ते ते अन्वयव्यतिरेकथी तेना कर्ता के खजावधीज मग रंधाय ने तेथी स्वनावज सर्व वस्तुनो हेतु जे. श्रा पांच विकल्प खतः ईश पदयी होय , तेवीज रीतें पांच परतः ईशपदथी उपलब्ध थाय . परतः शब्दनो अर्थ एवो बे के, पर पदार्थोंथी व्यावृत्तरूपें आ श्रात्मा निश्चयथी . तेवी रीतें नित्य शब्दयी दश विकल्प थाय , तेमज अनित्य पदयी पण दश विकल्प थाय बे. बंने एकग करवाश्री वीश थाय जे. आ वीश विकल्प जीव पदार्थ साथे थाय , तेवीज रीतें अजीवादि नवे पदार्थ साथे जुदा जुदा वीश विकल्प जाणी सेवा, एटले वीशने नवधी गुणतां एकसो एंशी मत क्रियावादिना थाय जे. हवे अक्रियावादिना चोराशी मत लखियें बियें. अक्रियावादी कहेबे के पुण्य, पापरूप क्रिया कांश नथी. कारण के पुण्य, पापरूपादि किया तो स्थिर पदार्थोने लागे , अने जगत्मां स्थिर पदार्थ तो कोश बे नहि, कारण के उत्पत्ति अनंतरज पदार्थनो विनाश थतो जाय डे. तथा श्लोक ॥ दणिकाः सर्वसंस्कारा, अस्थिराणां कुतः क्रिया ॥ नूतिर्येषां क्रिया सैव, कारकं सैव चोच्यते ॥१॥ अर्थः- सर्वसंस्कार पदार्थ क
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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