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________________ चतुर्थ परिबेद. (११७) नाव मात्रादिश्री बीजाश्रोए जे एम मानेल ले के स्त्री पुरुषना संयोग मात्र हेतुथी गर्जनी उत्पत्ति थायडे तो एक वर्ष वयना स्त्री पुरुषना संयोगथी केम गर्जनी उत्पत्ति थती नथी ते कारणथी कालज गर्जनी उत्पत्तिनो हेतु बे. तेमज स्त्रीने गर्न उत्पन्न थवामां तुकाल होवो जोश्ये, ते विना स्त्री पुरुषना संयोगथी गर्न केम उत्पन्न थतो नथी? वली कालज पकावे डे तथा पृथ्वी श्रादि नूतोने परिणामांतर प्रत्ये कालज पहोचाडे . तेमज पूर्व पर्यायथी पर्यायांतरमा लोकोने कालज स्थापन करे . वली सुप्त अवस्था प्राप्त श्रयेला प्राणियोनी रदापण कालज करे, ते कारपथी प्रत्यक्ष ने के काल उरतिक्रम . कालने दूर करवामां कोई समर्थ नथी, श्रा कालवादिनो विकल्प . तेविजरीतें बीजा विकल्प पण जाणी लेवा. परंतु कालने स्थानकें ईश्वरनी योजना करवी, “यथा अस्ति जीवः खतो नित्यः ईश्वरतः" जीव पोताना स्वरूपथी नित्य , परंतु ईश्वर उत्पन्न करे . कारण के ईश्वरवादी सर्व जगत् ईश्वरनुंज करेलुं माने . जेने १ ज्ञान, श्वैराग्य,३ धर्म, ४ बैश्वर्य,श्रा चारे स्वतः सिद्ध होय, तेमज जे, जीवोना स्वर्ग, नरक, मोदादि गमनमां प्रेरक होय तेने ईश्वर कहियें. यथा॥ ज्ञानमप्रतिघं यस्य, वैराग्यं च जगत्पतेः ॥ ऐश्वर्यं चैव धर्मश्च, सदसिहं चतुष्टयं ॥१॥श्रझोजंतुरनीशोय, मात्मनः सुखऽखयोः ॥ ईश्वरप्रेरितोगळेत, स्वर्ग वाश्वमेव वा ॥२॥इत्यादि. ___त्रीजो विकल्प श्रात्मवादियोनो . " पुरुष एवेदं सर्वमित्यादि" जे काई देखाय ले ते सर्व पुरुषज जे एम आत्मवादियोनो मत डे. चोथो विकल्प नियतवादियोनो . नियतवादियो कहे डे के पदार्थोमां एक एवं सामर्थ्य के जे सामर्थ्यथी सर्व पदार्थ पोत पोताना खरूपनियमोथी तेवाने तेवाज बन्या रजे, परंतु अन्यथापणे थता न थी. वली तेज बताविये बियें. जे पदार्थ जे कालमा जेनाथी थाय , । ते पदार्थ तेज कालमां, तेनाथी नियतरूपें थतो मालम पडेले. तेम जो न होय तो कार्य कारण जावनी व्यवस्था नियामकना अन्नावथी कदापि थायज नहि. ते कारणथी कार्यनियतताथी उपर मुजब प्रतीत थती जे नियति तेने प्रमाण पंथमां कुशल एवो कयो पुरुष बाध करी शके ले ?
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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