SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७) संस्था की कलकत्ता स्थित स्थावर संपत्ति का नबीन ट्रस्ट नामा श्री सेठिया जैन पारमार्थिक सस्था के संस्थापक महोदयों ने संस्था के स्थायित्व के लिये कलकते भौर बीकानेर में स्थावर सपत्ति प्रदान कर कलकत्ता और बीकानेर में उसकी लिखापढ़ी कर दी थी। कलकते की संपत्तिके अलग अलग तीन डीड्स आफ सेटलमेन्ट रजिस्टर्ड कराये गये थे। किन्तु उनमें कुछ कमी महसूस कर संस्थापक महोदयों ने उन्हें रद्द कर दिया एव सस्था के स्थायित्व के लिये उनके बदले ता० २१ सितम्बर १६४४ तदनुमार मिति प्रासोज सुदी ६ स. २००१ शनिवार को नीचे लिखी सपत्ति का नया डीड अॉफ ट्रस्ट बनाकर उसकी सवरजिस्ट्रार कलकत्ता के दफ्तर में रजिस्ट्री करा दी। उक्त नवीन डीड ग्राफ ट्रस्ट के अनुसार सेठिया जैन पारमार्थिक मस्था के वर्तमान में निम्नलिखित तीन ट्रस्टी है - १ श्रीमान् दानवीर सेठ भैरोंदानजी मेठिया २ , बावू जेठमलजी सेठिया ३ , , माणकचदजी सेठिया उक्त डीड के अनुसार ट्रस्टियों की संख्या ६ तक हो सकेगी। ट्रस्ट कमेटी के अधीन संस्था की व्यवस्था के लिये जनरल कमेटी,प्रवन्धकारिणी कमेटी तथा आवश्यकतानुसार अन्य सब कमेटियां स्थापित की जायेगी एव यथासमय उनके लिये नियम उपनियम निर्धारित किये जायेंगे। कलकत्ते की स्थायी संपत्ति १. मकान न १६०-१६० 11 पुराना चीना वाजार २ मकान न. ३,५,७,९,११ और १३ कोस स्ट्रीट (मूंगापट्टी) तथा न १२३ भौर १२५ मनोहरदास स्ट्रीट ३. मकान न ६ जेक्शनलेन तथा १११, ११२, ११३, ११४और ११५ केनिंग स्ट्रीट का दो तिहाई हिस्सा नोट-उक्त जेक्सनलेन और केनिग स्ट्रीट का एक तिहाई हिस्सा श्रीमान् वाबू जेठमलजी सा सेठिया ने सस्या को दिया वह नवीन ट्रस्ट डीड में है और एक तिहाई हिस्सा ता १६ ७-४० को संस्था ने खरीदा है । इस प्रकार इस मकान में संस्थाका दो तिहाई हिस्सा है और एक तिहाई हिस्साश्रीमान् गोविन्दरामजी भीखणचन्दजी भनसाली का है। कलकते की उक्त स्थावर संपत्ति के सिवा बीकानेर नगर में सध्या की नीचे लिखी स्थावर संपत्ति है
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy