SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवां भाग २५३ है । (६) उससे अपर्याप्त चादर वायुकाय की जघन्य अवगाहना असंख्यात गुणी है । (७) उससे अपर्याप्त बादर अग्निकाय की जघन्य अवगाहना असंख्यात गुणी है । (८) उससे अपर्याप्त बादर काय की जन्य अवगाहना असंख्यात गुणी है । (६) उससे अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय की जघन्य अवगाहना असंख्यात गुणी है । ( १०-११ ) प्रत्येक शरीर चादर वनस्पतिकाय तथा वादर निगोद के पर्याप्त को जवन्य अवगाहना उससे असंख्यात गुणी और दोनों की परस्पर तुल्य है । (१२) पर्याप्त सूक्ष्म निगोद की जघन्य अवगाहना उससे असंख्यात गुणी है । (१३) अपर्याप्त सूक्ष्म निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेषाधिक है। (१४) पर्याप्त सूक्ष्म निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेषाधिक है । (१५) पर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय की जघन्य अवगाहना उससे श्रसंख्यात गुणी है। (१६) अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है। (१७) पर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय की उत्कृष्ट विशेषाधिक है । (१८-२० ) पर्याप्त सूक्ष्म अग्निकाय की जघन्य श्रवगाहना असंख्यात गुणी है । अपर्याप्त सूक्ष्म अग्निकाय की उत्कृष्ट अवगाहना विशेपाधिक है और उससे भी पर्याप्त सूक्ष्म अग्निकाय की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है । (२१-२३) पर्याप्त सूक्ष्म अष्काय की जघन्य अवगाहना असंख्यात गुणी और अपर्याप्त सूक्ष्म अकाय तथा पर्याप्त सूक्ष्म अप्काय की उत्कृष्ट अवगाहना उत्तरोत्तर विशेषाधिक है । (२४-२६) पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय की जघन्य श्रवगाहना असंख्यातगुणी एवं पर्याप्त तथा पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय की उत्कृष्ट अवगाहना उत्त रोवर विशेषाधिक है । (२७-२६) पर्याप्त चादर वायुकाय की जघन्य अवगाहना श्रसंख्यात गुणी तथा अपर्याप्त और पर्याप्त चादर वायुकाय की उत्कृष्ट अवगाहना उत्तरोत्तर विशेपाधिक है ।
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy