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________________ २६० भी सेठिया जैन मन्यमाला वाले विद्वान् हैं। ज्योतिष के अंग भी आप जानते है और धर्मों के पारगामी आप ही हैं। (३६) आप ही अपना और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ हैं । अतएव, हे तपस्वी भिक्षुत्तम ! मिक्षा ग्रहण कर श्राप हम पर अनुग्रह कीजिये। (४०) (मुनि का उत्तर) हे द्विज ! मुझे तुम्हारी भिक्षा की आवश्यकता नहीं है । किन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम शीघ्र प्रवज्या स्वीकार करो। ऐसा करने से तुम भय रूप आवर्त्त वाले इस भीषण संसार समुद्र में परिभ्रमण न करोगे। (४१) भोग भोगने वाला कर्मों से लिप्त होता है और भोगों का त्याग करने वाले आत्मा को कर्म छूते भी नहीं हैं। यही कारण है कि भोगी आत्मा संसार में परिभ्रमण करता रहता है और त्यागी आत्मा मुक्त हो जाता है। (४२) गीले और सूखे मिट्टी के दो गोलों को यदि दीवाल पर फेंका जाय तो दोनों दीवाल से टकरायेंगे और जो गीला होगा वह वहीं पर चिपट जायगा। (४३) इसी तरह जो दुवुद्धि पुरुष विषयासक्त हैं वे कर्मबद्ध हो संसार में फंसे रहते हैं और जो विरक्त हैं वे मिट्टी के सखे गोले की तरह विषयों में आसक्त नहीं होते और न संसार में ही फंसते हैं। (४४ इस प्रकार मुनि का श्रेष्ठ धर्मोपदेश सुनकर विजयघोष ब्राह्मण ने जयघोष मुनि के पास दीक्षा धारण की। , (४५) संयम और चप द्वारा पूर्वकृत कर्मों का नाश कर जयघोष और विजयघोष-दोनों मुनि प्रधान सिद्धि गति को प्राप्त हुए। (उत्तराध्ययन पचीसवां अध्ययन) .६६७- आगम पैंतालीस स्थानकवासी सम्प्रदाय में प्रामाणिकता की दृष्टि से बत्तीस
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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