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________________ २५२ . भी सेठिया जैन मन्यमाला रागेण व दोसेण व,अहवा अकयन्नूणा पडिनिवेसणं । जो मे किंचि विभणियो,तमहं तिविहेणखामेमि ||८|| ____ भावार्थ-राग द्वेष,अकृतज्ञता अथवा आग्रहवश मैंने जो कुछ भी कहा है उसके लिये मैं मन वचन कायासे सभी से क्षमा चाहता हूँ। (मरणसमाधि प्रकीर्णक गाथा २१४) नोट-तयालीसवें वोल में सूत्र की गाथाएं हैं पाठक को ये गाथाए बत्तीस अस्वाध्याय ालकर पढना चाहिये । इसी ग्रन्थ में बोल नम्बर ६६८ में पचीस अरवाध्याय दिये गये हैं। चवालीसवाँ बोल ६६५-स्थावर जीवों की अवगाहना के अल्पबहुत्व के चैवालीस बोल पृथ्वीकाय, अकाय, अग्निकाय,वायुकाय और निगोद इनके सूक्ष्म बादर के भेद से दस भेद होते हैं। प्रत्येक शरीर बादर वनस्पत्तिकाय ग्यारहवां भेद है। पर्याप्त अपर्याप्त के भेद से इन (स्थावरों) के वाईस भेद होते हैं । इन जीवों में प्रत्येक की जघन्य और उत्कृष्ट दो तरह की अवगाहना होती है । इस प्रकार स्थावर जीवों की अवगाहना के ४४ पोल हो जाते हैं। इनका अल्पबहुत्व इस प्रकार है। (१ अपर्याप्तसूक्ष्म निगोद की जघन्य वगाहना सबसे कम है। (२)उससे अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय की जघन्य अवगाहना असं. ख्यात गुणी है । (३) उससे अपर्याप्त सूक्ष्म अग्निकाय की जघन्य अवगाहना असंख्यात गुणी है। (४) उससे अपर्याप्त सूक्ष्म अकाय की जघन्य अवगाहना असंख्यात गुणी है । (५) उससे अपर्याप्त म पृथ्वीकाय की जघन्य अवगाहना असंख्यात गुणी
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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