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________________ भी जन सिद्धान्त बोल संग्रह छठा भाग था और दूसरों को भी खिलाता था वह ३३०० वर्ष काआयुष्य पूर्ण करके छठी नरक में उत्पन्न हुआ। वहाँ से निकल कर समुद्रदत्त की स्त्री समुद्रदनाकी कुक्षि से उत्पन्न हुआ।उसका नाम सौर्यदत्त रक्खा गयायौवन अवस्था को प्राप्त होने पर उसके माता पिता की मृत्यु हो गई।वह स्वयं मच्छियों का व्यापार करने लगा। वह बहुत से नौकरों को रख कर समुद्र में से मच्छियाँ पकड़वा कर मंगवाता था,उन्हें तेल में तल कर स्वयं भी खाता था और दूसरों को भी खिलाता था तथा वेच कर आजीविका करता था। एक समय मछलियों के मांस का शूला बना कर वह सौर्यदत्त खा रहा था कि उसके गले में मछली का काँटा लग गया। इससे अत्यन्त प्रवल वेदना उत्पन्न हुई।बहुत से वैद्य उसकी चिकित्सा करने आये किन्तु कोई भी वैद्य उसकी शान्ति करने में समर्थ नहीं हुआ। सौर्यदत्त मच्छीमार के गले में तकलीफ बढ़ती ही गई जिससे उसका सारा शरीर सूख कर निर्मास बन गया। वह अपने पूर्वभव के पाप कर्मों का फल भोगरहा है। यहाँ से मर कर वह रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा। मृगापुत्र की तरह संसार परिभ्रमण करेगा। फिर पृथ्वीकाय से निकल कर मच्छ होगा मच्छीमार के हाथ से मारा जाकर इसी नगर में एक सेठ के यहाँ पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। दीक्षा लेकर सौधर्म देवलोक में देव होगा। वहाँ से चच कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म ले कर दीक्षा अङ्गीकार करेगा और सकल कर्मों का क्षय कर मोक्ष जायगा। (8) देवदत्ता रानी की कथा रोहीड़ नामक नगर में चैश्रमणदत्त राजा राज्य करताथा।उसकी रानी का नाम श्रीदेवी और पुत्र का नाम पुष्पनन्दी था।उसी नगर में दत्त नाम का गाथापति रहता था। उसकी स्त्री का नाम कृष्णश्री
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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