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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला और पुत्री का नाम देवदत्ता था । वह सर्वाङ्ग सुन्दरी थी। एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे।गौतम स्वामी भिक्षा के लिये शहर में पधारे । मार्ग में उज्झित कुमार की तरह राजपुरुषों से घिरी हुई एक स्त्री को देखा । वह उल्टी मुश्कों से बंधी हुई थी और उसके नाक, कान, स्तन आदि कटे हुए थे। गोवरी सेवापिस लौट कर गौतम स्वामी ने भगवान से उसस्त्री का पूर्व भव पूछा । भगवान् फरमाने लगे प्राचीन समय में सुपतिष्ठ नाम का नगर था।वह ऋद्धि सम्पत्ति से युक्त था। महामेन राजाराज्य करताथा। उसके धारिणी आदि एक हजार रानियाँ थीं। धारिणी रानी के सिंहसेन नाम का पुत्र था जब वह यौवनत्रय को प्राप्त हुआ तोश्यामा देवी आदि पाँच सौ राज कन्याओं के साथ एक ही दिन में उसका विवाह करवाया । जन' के लिये पॉच सौबड़े ऊँचे ऊँचेमहल बनवाये गये । सिंहसेन कुमार पाँच सौ ही रानियों के साथ यथेच्छ कामभोग भोगता हुआ आनन्द पूर्वकरहने लगा। कुछ सयमबीतने के बाद सिंहसेन राजा श्यामा रानी में ही आसक्त होगया। दूसरी ४६६ रानियों काआदर सत्कार कुछ भी नहीं करता और न उनसे सम्भाषण ही करता था । यह देख कर उन ४६ रानियों की धायमाताओं ने विष अथवा शास्त्र द्वारा उस श्यामारानी को मार देने का विचार किया। ऐसा विचार कर वे उसेमारने का मौका देखने लीं। श्यामा देवी को पतालगने पर वह बहुत भयभीत हुई किन जाने ये मुझे किस कुमृत्यु से मार देंगी। वह कोपगृह (क्रोध करके बैठने के स्थान) में जाकर आर्त रौद्र ध्यान करने लगी। राजा के पूछने पर रानी ने सारा वृत्तान्त निवेदन किया। राजा ने कहा तुम फिक्र मत मत करो, मैं ऐसा उपाय करूँगा जिससे तुम्हारी सारी चिन्ता दूर हो जायगी। सिंहसेन राजा ने सपातठ नगर के ब हर एक बड़ी कूटागा शाला बनवाई। इसके
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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