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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला आदि अनेक रोग उत्पन्न हो गये और वह भिखारी बन कर घर घर भीख माँगता फिरता है। यह अपने पूर्वकृत कर्मों का फल भोगरहा है। यहाँ की आयुष्य पूर्ण कर वह रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा। फिर मृगापुत्र की तरह संसार में परिभ्रमण करेगा।पृथ्वीकाय से निकल कर हस्तिनापुर में मुर्गा होगा। गोठिले पुरुषों द्वारा मारा जाकर उसी नगर में एक सेठ के घर जन्म लेगा ।संयमलेकर सौधर्म देवलोक में जायेगा । वहाँ से चव कर महाविदे क्षेत्र में जन्म लेगा। संयम अङ्गीकार कर, सकल कर्मों का क्षय कर सिद्ध बुद्ध यावत् मुक्त होगा। (5) सौर्यदत्त की कथा सोरीपुर में सौर्यदत्त नाम का गजा राज्य करता था। नगर के बाहर ईशान कोण में एक मच्छीपाड़ा (मच्छीमार लोगों के रहने का मोहल्ला) था। उसमें समुद्रदत्त नाम का एक मच्छीमार रहता था। उसकी स्त्री का नाम समुद्रदत्ता और पुत्र का नाम सौर्यदसथा। एक समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे। भिक्षा के लिए गौतम स्वामी शहर में पधारे। वहाँ एक पुरुष को देखा जिसका शरीर बिल्कुल सूखा हुआ था। चलते फिरते, उठते बैठते, उसकी हड्डियाँ कड़कड़ शब्द करती थीं। गले में मच्छी का काँटा . फंसा हुआ था, जिससे वह अत्यन्त वेदना का अनुभव कर रहा था। गोचरी से वापिस लौट कर गौतम स्वामी ने भगवान् से उसके पूर्वभव के विपय में पूछा । भगवान् फरमाने लगे प्राचीनसमय में नन्दीपुर नाम का नगर था वहाँमित्र नामक राजा राज्य करता था। उसके सिरीअ नामक रसोइया था। वह अधर्मी था और पाप कर्म करके आनन्द मानता था । वह अनेक पशु पक्षियों को मरवा कर उनके मांस केशले बनवा कर स्वयं भीखाता
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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