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________________ 456 श्री सेठिया जैन मन्थमाला mimromrammmmmmmmmmmmmmmmmmmr x. . rrrrrrrrrrrrrrrrrrrऔर बहुत कष्ट देकर उसे प्राण रहित करके समुद्र में डाल दिया। जिनपाल देवी के वचनों में नहीं फंसा इसलिए यक्ष ने उसको मानन्दपूर्वक चम्पा नगरी में पहुंचा दिया। वहाँ पहुँच कर जिनपाल अपने माता पिता से मिला। कई वर्षों तक सांसारिक सुख भोग कर प्रव्रज्या अङ्गीकार की। कई वर्षों तक संयम का पालन कर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुा / वहाँ का आयुष्य पूरा कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध, बुद्ध यावत् मुक्त होगा। अन्त में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अपने मुनियों को सम्बोधित कर फरमाथा कि- श्रयणो ! जो प्राणी छोड़े हुए काम भोगों की फिर से इच्छा नहीं करते थे जिनपाल की तरह शीघ्र ही संसार रूपी समुद्र को पार कर सिद्ध पद को प्राप्त करते हैं और जो प्राणी रयणा देवी सरीखी अविरति में फंस कर काम भोगों में आसक्त हो जाते हैं वे जिनरक्ष की तरह संसार रूपी समुद्र में पड़ कर अनन्त काल तक जन्म मरण के दुःखों का अनुभव करते हुए परिभ्रमण करते हैं। ऐसा समझ कर मुमुक्ष मात्माओं को काम भोगों से निवृत्ति करनी चाहिए। (10) चन्द्रमा का दृष्टान्त दसवां 'चन्द्र ज्ञात' अध्ययन-प्रमादी जीवों के गुणों की हानि और अप्रमादी जीवों के गुणों की वृद्धि होती है। यह बताने के लिए गौतम स्वामी द्वारा किये गये प्रश्न के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने चन्द्रमा का दृष्टान्त दिया। यथा पूर्णिमा के चन्द्रमा की अपेक्षा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा का चन्द्रमा हीन होता है। उसकी अपेक्षा द्वितीया का चन्द्रमा और हीन होता है। इस प्रकार क्रमशः हीनता को प्राप्त होता हुआ चन्द्रमा अमावस्या को सव प्रकार से हीन होजाता है अर्थात् अमावस्या का चन्द्रमा
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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